भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे मोहिनी अवतार की गणना त्रयोदश स्थान पर की गयी है।
अमृत-प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने समुद्र-मन्थन किया ; तब भगवान धन्वन्तरि जी अमृत-कलश लिए हुए प्रकट हुए।उन्हें देखते ही असुरगण दौड़ पड़े।उन्होंने धन्वन्तरि जी के हाथ से अमृत-कलश छीन लिया।इधर देवगण निराश होकर भगवान विष्णु की शरण मे गये।उनकी दीनदशा को देखकर भक्तवत्सल प्रभुवर ने कहा -- देवताओ ! तुम लोग खेद मत करो।मै अपनी माया से तुम्हारा अभीष्ट पूर्ण करूँगा।
असुरों ने अमृत तो छीन लिया किन्तु वे आपस मे लड़ने लगे।प्रत्येक असुर अमृत को पहले पीना चाहता था।इसलिए परस्पर तू - तू ; मै-मै हो रहा था।उसी समय भगवान विष्णु जी सुन्दरी स्त्री का रूप धारण कर प्रकट हो गये।उनका शरीर नीलकमल के समान अत्यन्त मनोहर एवं चित्ताकर्षक था।उनके अंग-प्रत्यंग रत्नाभूषणों से सुसज्जित थे।उनकी मन्द-मन्द मुस्कान ; तिरछी भौहें और विलासकारी चितवन ने सभी असुरों को काममोहित कर दिया।
सभी असुर आपसी संघर्ष को त्यागकर उस परम सुन्दरी के पास पहुँच गये और बोले -- सुन्दरी ! ऐसा प्रतीत होता है कि विधाता ने ही हमारी इन्द्रियों को तृप्त करने के लिए तुम्हें यहाँ भेजा है।मानिनी ! हम लोगों ने अमृत-प्राप्ति के लिए एक साथ पुरुषार्थ किया है।अतः तुम निष्पक्ष भाव से इस अमृत को देवताओं और असुरों को वितरित कर दो।इसे सुनकर मोहिनी रूपधारी श्रीहरि ने कहा -- आप लोग मुझसे अपरिचित हैं ; फिर भी इतना विश्वास क्यों करते हैं ? उनकी मायामयी मधुर वाणी को सुनकर असुरों को और अधिक विश्वास हो गया।उन्होंने अमृत-कलश मोहिनी के हाथों मे सौंप दिया।
मोहिनी ने कामोद्दीपनी मुस्कान के साथ कहा -- " मै उचित या अनुचित जो भी करूँ " क्या तुम लोग उसे स्वीकार करोगे ? असुरों ने कहा -- हाँ स्वीकार है।इस प्रकार भगवान ने अपनी माया से उन्हें पूर्णतः मोहित कर लिया।इसके बाद सभी ने एक दिन का उपवास करके स्नान ; ध्यान किया।मोहिनी ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग पंक्तियों मे बैठा दिया।उन्होंने सर्वप्रथम देवताओं को अमृत पिलाना आरम्भ किया।उस समय राहु को मोहिनी की नीयत पर कुछ सन्देह हो गया।वह देवता का वेष बनाकर देवपंक्ति मे बैठ गया।उसने जैसे ही अमृत-पान किया ; वैसे ही सूर्य और चन्द्रमा ने भगवान को संकेत कर दिया।भगवान ने तत्काल चक्र सुदर्शन से उसका शिर काट डाला।परन्तु अमृत पी लेने के कारण वह दो भागों मे विभक्त होकर अमर हो गया।उसका शिर " राहु " के नाम से और धड़ " केतु " के नाम से प्रसिद्ध हो गया।जब सभी देवताओं ने अमृत पी लिया ; तब भगवान मोहिनी का रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप मे दैत्यों के समक्ष प्रकट हो गये।इस प्रकार देवताओं को अमृत पिलाकर उन्हें अमर बनाने मे भगवान के मोहिनी स्वरूप की अत्यधिक महत्ता है।
Friday, 5 August 2016
मोहिनी अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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