Sunday, 21 August 2016

भगवन्नाम संकीर्तन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           अपने इष्टदेव का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना करने का विधान है।आराधना मे उनके स्तोत्रों का पाठ एवं मन्त्रों का जप किया जाता है।परन्तु ये दोनों साधन कठिन एवं श्रमसाध्य हैं।इसमे विधि-विधान की आवश्यकता पड़ती है।साथ ही इनका प्रयोग केवल पढ़े-लिखे सुयोग्य व्यक्तियों द्वारा ही सम्भव है।कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए स्तोत्रों का पाठ अथवा मन्त्रों का जप बहुत कठिन है।ऐसे लोगों के लिए भगवन्नाम-संकीर्तन ही सर्वश्रेष्ठ साधन है।पढ़े-लिखे  एवं सुयोग्य व्यक्तियों के लिए भी यह उपाय अच्छा ही है।
           भगवन्नाम-संकीर्तन मे किसी विशेष विधि-विधान की अपेक्षा नहीं होती है।इसे सामान्य स्तर का व्यक्ति भी आसानी पूर्वक अपना सकता है।इतना ही नहीं ; बल्कि बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी नाम-संकीर्तन कर सकता है।उदाहरण के लिए " ऊँ नमः शिवाय " का संकीर्तन करना हो तो विशेष शिक्षा एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती।श्रद्धा ; भक्ति ; आस्था आदि तो चाहिए ही।हमारे शास्त्रकारों ने तो यहाँ तक कहा है कि किसी भी प्रकार से भगवन्नामोच्चारण हो जाय तो भी असीम पुण्य फल प्राप्त होता है।इसलिए यदि संकीर्तन मे कुछ कमी रहेगी तो भी नामोच्चारण-जन्य पुण्य तो प्राप्त होगा ही।
            नाम-संकीर्तन एक योग है। योग मे चित्त-वृत्तियों का निरोध एवं मन को एकाग्र करने का प्रयास करना पड़ता है।परन्तु नाम-संकीर्तन मे वह स्वयमेव हो जाता है।संकीर्तन मे संगीत का पुट लगा रहता है।मन को प्रभावित करने वाले अन्यान्य साधनों मे संगीत बहुत महत्त्वपूर्ण है।संगीत केवल मनुष्य को ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों को भी मुग्ध कर देता है।नाम-संकीर्तन मे जब स्वर ; ताल और लय के साथ भगवन्नामोच्चारण किया जाता है ; तब चित्त स्वयमेव एकाग्र हो जाता है।इतना ही नहीं ; बल्कि संकीर्तन करने वाला व्यक्ति इतना भाव-विभोर हो जाता है कि वह अपनी सुध-बुध तक खो देता है।इसीलिए भगवान शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
         नाम-संकीर्तन की महत्ता प्रायः सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है।सूर ; तुलसी ; मीरा ; कबीर ; नानक आदि ने तो इसी के आधार पर सिद्धि प्राप्त की थी।चैतन्य महाप्रभु तो नाम-संकीर्तन करते-करते नृत्य भी करने लगते थे।आज भी देखिए जहाँ पर संकीर्तन होता रहता है ; वहाँ बैठे हुए सभी सहृदय व्यक्ति आनन्द से झूम उठते हैं।वहाँ का वातावरण भी देवमय हो जाता है।अनायास तालियाँ बजने लगती हैं।कुछ लोगों के तो प्रेमाश्रु भी बहने लगते हैं।अतः देवाराधन के अनेक विध साधनों मे नाम-संकीर्तन एक महत्त्व पूर्ण साधन है।इसमे किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं करना चाहिए।

No comments:

Post a Comment