Saturday, 20 August 2016

मन्त्र जप विधि --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           किसी भी देवी-देवता की आराधना मे उनके पूजन के पश्चात् स्तोत्र-पाठ अथवा मन्त्र-जप का विधान है।स्तोत्र प्रायः बड़े और कई श्लोकों वाले होते हैं।मन्त्र सदैव छोटे एवं सीमित अक्षरों वाले होते हैं।स्तोत्रों का पाठ उच्च स्वर मे सस्वर होता है किन्तु मन्त्रों को नियम बद्ध ढंग से जप किया जाता है।अतः सर्वप्रथम जप का अर्थ समझना आवश्यक है।
जप -- इस शब्द मे दो अक्षर हैं -- ज और प।यहाँ " ज " अक्षर से जन्म-मृत्यु के बन्धन का विच्छेद होता है और " प " अक्षर से सम्पूर्ण पाप-राशि का विनाश होता है।इस प्रकार जो जन्म-मरण के बन्धन एवं पाप का विनाश करता है ; उसे जप कहा जाता है ---
   जकारो जन्मविच्छेदः पकारः पापनाशकः।
   तस्माज्जप इति प्रोक्तो जन्मपापविनाशकः।।
जप के भेद ---
          विद्वानों ने जप के तीन भेद माने हैं ; जिन्हें वाचिक ; उपांशु और मानसिक कहा जाता है।इन तीनों के लक्षण इस प्रकार हैं --
वाचिक जप --
           जब वाणी द्वारा मन्त्र के अक्षरों का उच्चारण इस ढंग से किया जाय कि वे स्पष्ट रूप से सुनायी पड़ें ; तब उसे वाचिक जप कहा जाता है ---
   यदुच्चनीचोच्चरितैः शब्दैः स्पष्टपदाक्षरैः।
   मन्त्रमुच्चारयन् वाचा जपयज्ञस्तु वाचिकः।
उपांशु जप ---
          जब मन्त्र के अक्षरों का उच्चारण इस ढंग से किया जाय कि जपकर्ता के ओष्ठ धीरे-धीरे हिलते रहें किन्तु समीप मे बैठा व्यक्ति उसे स्पष्ट रूप से सुन न सके।केवल जपकर्ता ही स्वयं सुन सके तो उसे उपांशु जप कहा जाता है ---
   शनैरुच्चारयन् मन्त्रं किंचिदोष्ठौ प्रचालयेत्।
   किंचिच्छ्रवणयोग्यः स्यात् स उपांशुर्जपः स्मृतः।।
मानसिक जप ---
          जब मन्त्र के पद और अक्षरों का शब्दार्थ सहित अन्तर्मन द्वारा विचार करते हुए जप करें परन्तु ओष्ठ और जिह्वा न हिले ; तब उस जप को मानसिक जप कहा जाता है ---
   धिया पदाक्षरश्रेण्या अवर्णमपदाक्षरम्।
   शब्दार्थचिन्तनाभ्यां तु तदुक्तं मानसं स्मृतम्।।
           इस प्रकार जप तो तीन प्रकार से किया जा सकता है किन्तु ये विधियाँ एक दूसरे से अधिक श्रेष्ठ मानी गयी हैं।विधियज्ञ की अपेक्षा वाचिक जप दसगुना श्रेष्ठ माना गया है।वाचिक जप की अपेक्षा उपांशु जप सौगुना श्रेष्ठ होता है।मानसिक जप तो उपांशु जप से सहस्र गुना श्रेष्ठ माना गया है ---
   विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः।
   उपांशुः स्याच्छतगुणाः साहस्रो मानसः स्मृतः।।
          इस प्रकार किसी भी मन्त्र का जप करते समय मानसिक जप करने का प्रयास करना चाहिए।उसके द्वारा अधिकाधिक फल की प्राप्ति होती है।परन्तु उपर्युक्त तीनों विधियों मे से कोई भी विधि वर्जित नहीं है।केवल फल की मात्रा ही न्यूनाधिक होती है।

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