Tuesday, 23 August 2016

सर्वोत्तम प्रायश्चित्त -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          कभी न कभी जाने-अनजाने मे पाप या अपराध कर जाना मनुष्य का स्वभाव है।जीवन मे अनेक ऐसी स्थितियाँ आ जाती हैं ; जब न चाहते हुए भी अनजाने मे कोई न कोई पाप या अपराध हो जाता है।पाप या अपराध हो जाने पर कष्ट होना सुनिश्चत है।अतः उस कष्ट की निवृत्ति हेतु उस पाप या अपराध का प्रायश्चित्त करना आवश्यक होता है।प्राचीन मनीषियों ने प्रत्येक पाप के निवारण हेतु कृच्छ्र ; चान्द्रायण आदि अनेकविध उपायों का उल्लेख किया है।परन्तु ये सभी उपाय बहुत कष्टसाध्य ; श्रमसाध्य एवं व्ययसाध्य होने के कारण सामान्य जनों के लिए दुष्कर ही हैं।
           इन्हीं तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए महर्षि वेदव्यास ने विष्णुपुराण ( 2/6/39 ) मे अत्यन्त सरल प्रायश्चित्त का विधान किया है।उनके मतानुसार पापापराध के प्रायश्चित्त हेतु जितने भी तपस्यात्मक एवं कर्मात्मक प्रायश्चित्त हैं ; उन सब मे श्रीकृष्ण-स्मरण ही सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित्त है ---
   प्रायश्चित्तान्यशेषाणि तपः कर्मात्मकानि वै।
   यानि तेषामशेषाणां कृष्णानुस्मरणम्परम्।।
           अतः जब भी जाने-अनजाने मे कोई पापापराध हो जय ; तब उसका प्रायश्चित्त अवश्य करना चाहिए।उसके लिए भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करना सर्वोत्तम उपाय है।परन्तु दुबारा उस पापापराध से बचने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।यहाँ यह नहीं समझना चाहिए कि जान बूझ कर पापापराध करें और श्रीकृष्ण-स्मरण रूपी प्रायश्चित्त करते रहें।यह तो और भी भीषण अपराध होगा।अतः सभी अपराधों से बचना चाहिए।

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