Thursday, 18 August 2016

नन्द-यशोदा का पूर्व जन्म -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           अष्ट वसुओं मे " द्रोण " का नाम विशेष प्रसिद्ध है।वे भगवान श्रीहरि के अनन्य भक्त थे।उनकी पत्नी " धरा " भी अपने पति की ही भाँति श्रीनारायण के प्रति पूर्ण समर्पित थीं।वे दोनों सदैव भगवद्भक्ति मे लीन रहते थे।एक बार द्रोण ने भगवान ब्रह्मा जी से प्रार्थना की -- हे देव ! मै पृथ्वी पर जब जन्म धारण करूँ ; तब भगवान श्रीहरि के प्रति मेरी परमा भक्ति बनी रहे।द्रोण की पत्नी धरा भी वहाँ विद्यमान थीं।उन्होंने अपने मुख से तो कुछ नहीं कहा ; परन्तु उनकी भी हार्दिक अभिलाषा वही थी ; जो उनके पतिदेव की थी।ब्रह्मा जी ने उनकी प्रार्थना के अनुरूप वरदान दे दिया।
            कालान्तर मे वही द्रोण नामक वसु व्रज मे नन्द के रूप मे अवतरित हुए।दूसरी ओर धरा का भी अवतरण सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से हुआ।उस कन्या का नाम यशोदा रखा गया।बाद मे यशोदा का विवाह व्रजराज नन्द के साथ हुआ।वे दोनो सदैव भगवद्भक्ति मे लगे रहते थे।नन्द और यशोदा की अवस्था भी अधिक हो गयी।अवस्था बढ़ने के साथ-साथ उनकी भक्ति भी सुदृढ़ से सुदृढ़र होती गयी। श्वेतवाराह कल्प की अट्ठाईसवीं चतुर्युगी के द्वापरयुग का अन्तिम चरण आ गया।तभी देवकी के गर्भ से लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र का अवतरण हुआ।भगवान स्वयं वसुदेव द्वारा यशोदा के पास आ गये और अपनी बाल-लीलाओं द्वारा नन्द और यशोदा का मनोरथ पूर्ण कर दिया।इस प्रकार भगवान ब्रह्मा जी का वरदान फलीभूत हुआ।

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