Friday, 5 August 2016

धन्वन्तरि अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे धन्वन्तरि अवतार की गणना द्वादश स्थान पर की गयी है।इनका आविर्भाव समुद्र से हुआ है।
           महर्षि दुर्वासा के शाप से जब इन्द्रादि देवता श्रीहीन हो गये ; तब उन्होंने भगवान श्रीहरि से अपने उत्कर्ष का उपाय पूछा।श्रीहरि ने समुद्र-मन्थन द्वारा अमृत प्राप्त करने का परामर्श दिया।बाद मे देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र-मन्थन आरम्भ किया।उससे सर्वप्रथम हलाहल विष निकला उसके बाद कामधेनु ; ऐरावत हाथी ; उच्चैःश्रवा अश्व ; अप्सरायें ; कौस्तुभ मणि ; वारुणी ; शंख ; कल्पवृक्ष ; चन्द्रमा ; लक्ष्मी जी और कदली वृक्ष प्रकट हुए।किन्तु अमृत नहीं निकला।
            यद्यपि समुद्र-मन्थन करते हुए पर्यान्त समय व्यतीत हो चुका था फिर भी देवगण निराश नहीं हुए।वे दैत्यों के सहयोग से मन्थन करते रहे।उसी समय समुद्र से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए।उनकी शारीरिक संरचना बहुत सुन्दर एवं आकर्षक थी।उनके गले मे माला और शरीर मे रत्नाभूषण विराजमान थे।उनके साँवले शरीर पर पीताम्बर और अधिक सुशोभित हो रहा था।उनके हाथ मे कंगन और अमृत भरा कलश विराजमान था।वे भगवान विष्णु के अंशावतार थे।आगे चलकर वे आयुर्वेद के प्रवर्तक और यज्ञभोक्ता धन्वन्तरि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
          बाद मे वे देवताओं के वैद्य बनकर इन्द्रपुरी मे रहने लगे।कुछ दिनो बाद पृथ्वी पर अनेक व्याधियाँ फैल गयीं।सम्पूर्ण विश्व मे हाहाकार मच गया।तब देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर धन्वन्तरि ने काशिराज दिवोदास के रूप मे अवतरित हुए।उनके सत्प्रयास से समस्त व्याधियाँ नष्ट हो गयीं।उनका अवतरण कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को हुआ था।इसलिए आज भी उक्त तिथि को धन्वन्तरि जयन्ती मनायी जाती है।

No comments:

Post a Comment