Wednesday, 10 August 2016

परशुराम अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे परशुराम अवतार की गणना षोडश स्थान पर की गयी है।इस अवतार मे उन्होंने ब्रह्मद्रोही क्षत्रिय-नरेशों का इक्कीस बार विनाश किया था ---
   अवतारे षोडशमे पश्यन् ब्रह्मद्रुहो नृपान्।
   त्रिःसप्तकृत्वः कुपितो निःक्षत्रामकरोन्महीम्।।
           प्राचीन काल मे जमदग्नि नामक एक महर्षि थे।उन्होंने अपनी तपस्या से इन्द्र को प्रसन्न कर उनसे एक कामधेनु प्राप्त किया था।जमदग्नि का विवाह रेणुका के साथ हुआ।एक बार महर्षि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया।उस यज्ञ से प्रसन्न होकर इन्द्र ने उन्हें एक महाबाहु ; महातेजस्वी एवं महा बलशाली पुत्र होने का वरदान दिया।कलान्तर मे उस तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ ; जिसका नाम " राम " रखा गया।
           " राम " भगवान विष्णु के अंशांश से  प्रकट हुए थे ; इसलिए उनमे सभी शुभ लक्षण विद्यमान थे।उन्होंने अल्पकाल मे ही समस्त विद्याओं मे प्रवीणता प्राप्त कर ली थी।बाद मे वे शालग्राम पर्वत पर तप करने चले गये।वहाँ उन्हें महर्षि कश्यप का दर्शन प्राप्त हुआ।उनकी दीक्षा ग्रहण करके वे भगवान विष्णु की आराधना करने लगे।
          इधर जमदग्नि जी कामधेनु की कृपा से सानन्द जीवन यापन कर रहे थे।एक दिन हैहयराज अर्जुन उनके आश्रम पर आया और उनसे कामधेनु को माँगने लगा।मुनिवर ने गाय देना अस्वीकार कर दिया।राजा ने बलपूर्वक गाय का अपहरण कर लिया।उस गाय ने अपनी सींगों से राजा के सभी सैनिकों को मार डाला और स्वयं इन्द्रलोक चली गयी।राजा अर्जुन को बहुत क्रोध आया।उसने महर्षि जमदग्नि का वध कर दिया।
          उधर " राम " ने अपनी तपस्या के द्वारा भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया।भगवान ने उन्हें दर्शन देकर एक परशु ; वैष्णव महाधनुष और अनेक दिव्यास्त्र प्रदान किया।साथ ही आदेश दिया कि तुम मेरी शक्ति से आविष्ट होकर दुष्ट राजाओं का वध कर देवताओं का हित करो।सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतकर धर्मपूर्वक शासन करो।इसके बाद राम अपने पिता के आश्रम पर आ गये।यहाँ उन्हें पता चला कि हैहयराज अर्जुन ने उनके पिता की हत्या कर दी।अतः वे बदला लेने के लिए अर्जुन के राज्य मे पहुँचे।राजा और राम के मध्य भयानक युद्ध हुआ।अन्त मे राम ने अर्जुन और उसकी सेना का अन्त कर दिया।इसके बाद भगवान विष्णु के आदेशानुसार इक्ष्वाकु-वंशी क्षत्रियों को छोड़कर अन्य समस्त क्षत्रिय राजाओं का संहार कर दिया।उसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करके सम्पूर्ण भूमि श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दान कर दिया।तदनन्तर वे तपस्या करने के लिए बदरिकाश्रम चले गये।
            अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि " राम " ने कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर की उपासना की थी।शंकर जी ने प्रसन्न होकर उन्हें एक अमोघास्त्र " परशु " प्रदान किया।इसी परशु के कारण उन्हें परशुराम कहा जाने लगा।वे बहुत पितृभक्त थे।एक बार उनकी माता जल लेने के लिए यमुना तट पर गयीं।वहाँ गन्धर्वराज चित्ररथ को देखकर उनका भाव दूषित हो गया।यह बात महर्षि जमदग्नि को विदित हो गयी।जब वे जल लेकर लौटीं तब महर्षि ने अपने पुत्रों से कहा -- इस पापिनी का वध कर दो।परन्तु कोई पुत्र अपनी माता की हत्या करने को तैयार नहीं हुआ।इसी समय परशुराम आ गये।पिता ने उन्हें भी आज्ञा दी -- तुम अपनी माता सहित सभी भाइयों की हत्या कर दो।परशुराम को अपने पिता की आध्यात्मिक एवं अलौकिक शक्ति का ज्ञान था।अतः उन्होंने तत्काल सभी का सिर काट डाला।इससे प्रसन्न होकर जमदग्नि ने उनसे वरदान माँगने को कहा।परशुराम ने वर माँगा कि आप मेरी माता सहित मेरे भाइयों को जीवित कर दो।महर्षि ने उन्हें पुनर्जीवन प्रदान कर दिया।

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