Wednesday, 24 August 2016

संकीर्तन माहात्म्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          देवाराधन की विभिन्न विधियों मे भगवन्नाम-संकीर्तन का विशेष महत्त्व है।नाम लेते ही भगवान का रूप ; गुण आदि प्रत्यक्ष सा हो जाता है।उदाहरणार्थ ऊँ नमः शिवाय कहते ही भगवान शिव जी का स्वरूप अन्तर्मन मे झलकने सा लगता है।इसके कारण मन उन्हीं मे लग जाता है और वह विचलित नहीं होता है।
          भगवन्नाम-संकीर्तन की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमे देश ; काल ; पवित्रता ; अपवित्रता  आदि का नियम नहीं होता है।मनुष्य अपनी इच्छानुसार कभी भी अपने प्रिय देवता का नाम-संकीर्तन कर सकता है ---
   न देशकाल नियमः शौचाशौचविनिर्णयः।
   परं संकीर्तनादेव राम रामेति मुच्यते।।
          यहाँ राम शब्द उपलक्षण मात्र है।किसी भी देवी देवता के नाम-कीर्तन मे देश काल आदि का नियम नहीं है।मनुष्य अपने इष्टदेव के नाम का कीर्तन सुविधा पूर्वक कर सकता है।इसी से मिलते जुलते श्लोक अन्यत्र भी उपलब्ध हैं।उन श्लोकों मे विष्णु ; शिव आदि के लिए भी देश काल आदि नियमों मे छूट दी गयी है।

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