भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे वामन अवतार की गणना पञ्चदश स्थान पर की गयी है।इस अवतार मे भगवान वामन का रूप धारण कर दैत्यराज बलि के यज्ञ मे गये।वे चाहते तो थे सम्पूर्ण त्रैलोक्य का राज्य ; परन्तु वहाँ उन्होंने केवल पग भूमि माँगी थी ---
पञ्चदशं वामनकं कृत्वागादध्वरं बलेः।
पदत्रयं याचमानः प्रत्यादित्सुस्त्रिविष्टपम्।।
एक बार दैत्यराज बलि ने इन्द्रलोक पर चढ़ाई कर दी। देवगण भयभीत होकर स्वर्ग को छोड़कर भाग गये।अमरावतीपुरी पर बलि का अधिकार हो गया।इससे देवताओं की माता अदिति को भी बहुत दुःख हुआ।उन्होंने अपनी व्यथा अपने पतिदेव महर्षि कश्यप से बतायी।महर्षि ने उन्हें पयोव्रत करने को कहा।अदिति ने यथोचित रीति से व्रत किया।इससे प्रसन्न होकर भगवान पुरुषोत्तम प्रकट हुए।उन्होंने देवमाता से कहा -- मै तुम्हारे व्रत से बहुत प्रसन्न हूँ।साथ ही तुम्हारे मनोभाव को भी जानता हूँ।अतः मै तुम्हारे पुत्र के रूप मे अवतरित होकर तुम्हारी सन्तानों की रक्षा करूँगा।इतना कहकर वे अन्तर्धान हो गये।
कुछ दिनों बाद भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को श्रवण नक्षत्र रहते हुए अभिजित् मुहूर्त मे अदिति के गर्भ से भगवान प्रकट हुए।महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति जब उनके रूप-सौन्दर्य का अवलोकन करने मे निमग्न थे ; तभी भगवान ने उस रूप को त्याग कर वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर लिया।अब तो उनका लावण्य और अधिक बढ़ गया।महर्षि ने उनके जातकर्म आदि सभी संस्कार सम्पन्न किये।जब उनका उपनयन संस्कार हुआ ; तब ज्ञात हुआ कि इस समय दैत्यराज बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं।भगवान वामन भी उस यज्ञ मे सम्मिलित होने के लिए चल पड़े।
वह यज्ञ नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर भृगुकच्छ नामक स्थान पर हो रहा था।भगवान वामन भी यज्ञमण्डप मे पहुँच गये।राजा बलि ने उनका यथोचित सत्कार एवं पूजन किया।बाद मे उसने पूछा -- ब्राह्मणकुमार ! आपके आगमन से मै और मेरा परिवार धन्य हो गया है।आपकी भावभंगिमा से प्रतीत होता है कि आप कुछ माँगना चाहते हैं।अतः आप मनोवाँछित वस्तु माँग लीजिए।भगवान ने कहा -- राजन् ! आपके वाक्य आपकी कुल-परम्परा के अनुरूप ही हैं।आप तो मुहमाँगी वस्तुओं को प्रदान करने वाले दानियों मे सर्वश्रेष्ठ हैं।वैसे तो आप सम्पूर्ण जगत् के स्वामी हैं ; अधिक से अधिक दे सकते हैं।परन्तु मै अपने पैरों से केवल तीन पग भूमि चाहता हूँ।इसे सुनकर दैत्यराज ने कहा मै तीनों लोकों का एकमात्र स्वामी हूँ।मै तुम्हें द्वीप का द्वीप देने मे सक्षम हूँ।इसलिए अपनी जीविका के लिए तुम्हें जितनी भूमि की आवश्यकता हो ; उतनी माँग लो।प्रभुवर ने कहा -- मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए ; उससे अधिक नहीं।
राजा बलि जब भूमिदान का संकल्प करने लगे तब शुक्राचार्य ने उन्हें रोकने का प्रयास किया।उन्होंने समझाया कि ये साक्षात् विष्णु ही हैं ; जो देवकार्य की सिद्धि हेतु अदिति के गर्भ से अवतीर्ण हुए हैं।ये तीन पगों मे सभी लोकों को नाप लेंगे और तुम्हारा राज्य ; ऐश्वर्य ; लक्ष्मी आदि लेकर इन्द्र को सौंप देंगे।इसलिए आप इन्हें भूमिदान न करें।तब महाराज बलि ने कहा -- गुरुदेव ! आपका कथन सत्य है।परन्तु मै भक्तराज प्रह्लाद का पौत्र हूँ।मै एक बार हाँ करके उससे विचलित नहीं हो सकता हूँ।शुक्राचार्य के बार-बार समझाने के बाद भी बलि नहीं माने तब उन्होंने बलि को शाप दे दिया।परन्तु महाराज बलि तो बहुत बड़े महात्मा थे।उन्होंने शाप की परवाह न करते हुए तीन पग भूमि देने का संकल्प कर दिया।
उस समय भगवान वामन का रूप बढ़ने लगा।वह इतना अधिक बढ़ गया कि पृथ्वी और आकाश सहित सब कुछ उसी मे समा गया।उन्होंने एक पग से सम्पूर्ण पृथ्वी को नाप लिया।शरीर से आकाश और भुजाओं से दिशाओं को घेर लिया।दूसरे पग से स्वर्ग सहित सम्पूर्ण लोकों को नाप लिया।तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहा।तब भगवान ने कहा -- दैत्येन्द्र ! तुम अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण न कर पाने के कारण ऋणी हो गये हो।तुम मेरा तीसरा पग पूर्ण करो अन्यथा बन्धन मे आ जाओ।इसके बाद भगवान के आदेशानुसार पक्षिराज गरुड़ ने वरुण के पाशों से बलि को बाँध लिया।फिर प्रतिज्ञा पूर्ण न करने के कारण भगवान ने बलि की बहुत भर्त्सना की।किन्तु बलि तनिक भी विचलित नहीं हुए।उन्होंने बड़े धैर्य के साथ कहा -- प्रभुवर ! मै प्रतिज्ञा तोड़ने वाला नहीं हूँ।मै पूर्ण सत्यप्रतिज्ञ हूँ।आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।मै अपनी अपकीर्ति नहीं होने दूँगा।
इसी समय प्रह्लाद ; बलि की पत्नी ; ब्रह्मा जी आदि आ गये।उन सबने बलि को पाशमुक्त करने का निवेदन किया।इसे सुनकर बलि की आँखों मे आँसू आ गये।वे विनम्रता पूर्वक भगवान की स्तुति करने लगे।उसी समय वे पाशमुक्त हो गये और असुरों के साथ सुतल लोक को चले गये।भगवान ने बलि से प्राप्त स्वर्ग का राज्य देवराज इन्द्र को सौंप दिया।
Saturday, 6 August 2016
वामन अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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