Friday, 12 August 2016

बलराम अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          श्रीमद्भागवत महापुराण ( 1/3/23 ) मे भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे बलराम अवतार की गणना उन्नीसवें स्थान पर की गयी है।परन्तु अन्य स्थलों पर उन्हें श्रीकष्ण के साथ एक ही संख्या मे परिगणित किया गया है।
          देवकी के अष्टम गर्भ द्वारा अपनी मृत्यु की आकाशवाणी को सुनकर कंस ने  देवकी और वसुदेव को बन्दीगृह मे डाल दिया।फिर क्रमशः छः पुत्रों को मार डाला।सप्तम गर्भ के रूप मे बलराम जी आये।परन्तु योगमाया ने उन्हें देवकी के गर्भ से वसुदेव की द्वितीय पत्नी रोहिणी के गर्भ मे पहुँचा दिया।उस समय रोहिणी गोकुल मे नन्दबाबा के यहाँ निवास कर रही थीं।उन्हें दूसरे गर्भ मे संकर्षित किया गया था।इसलिए उन्हें संकर्षण भी कहा जाता है।
            इस प्रकार बलराम जी श्रीकृष्ण जी के अग्रज एवं भगवान के अंशस्वरूप शेषावतार थे।वे नन्दबाबा के यहाँ श्रीकृष्ण के साथ रहते थे।ग्वालबालों के साथ दोनों भाई गोचारण के लिए भी जाया करते थे।वास्तव मे वे दोनों परस्पर नित्य अभिन्न थे।इसलिए उनका पृथक् -पृथक् चरित्रांकन बहुत कम स्थलों पर ही संभव है।विशेषकर बाल-लीलाओं मे तो वे दोनो सहभागी ही रहते थे।
          एक बार श्रीकृष्ण और बलराम जी ग्वालबालों के साथ खेल रहे थे।उसी समय ग्वाल-वेष मे कंस-प्रेषित प्रलम्बासुर आ गया।वह श्रीकृष्ण और बलराम का हरण करना चाहता था।श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया।अतः उसका वध करने के लिए एक नवीन खेल का आरम्भ किया।इस खेल मे एक दल का सदस्य दूसरे दल के एक सदस्य को पीठ पर बैठा कर नियत स्थान तक ले जाता था।प्रलम्बासुर ने बलराम को अपनी पीठ पर बैठाया और उनका हरण करने के उद्देश्य से भागने लगा।बलराम जी पर्वत सदृश वजन वाले थे।अतः वह असुर थक कर अपने वास्तविक स्वरूप मे प्रकट हो गया।बलराम ने एक ही घूँसे से उसका अन्त कर दिया।
           एक बार ग्वालबालों ने पके हुए तालफलों को खाने की इच्छा व्यक्त की।दोनों भाई फल लाने के लिए तालवन की ओर चल पड़े।वहाँ पहुँच कर बलराम ने पर्याप्त फल तोड़ लिए।इसी समय उन फलों का रक्षक धेनुकासुर गधे का रूप धारण कर आ गया।उसने बलराम के वक्षःस्थल पर दुलत्ती से प्रहार किया।बलराम ने उसके दोनों पैरों को पकड़ लिया और घुमा कर पटक दिया ; जिससे उसका प्राणान्त हो गया।बाद मे उस असुर के सम्पूर्ण परिवार को उसी प्रकार मार डाला।
          बलराम जी बहुत बलशाली थे।उनके महाबलत्व का वास्तविक परिचय तब प्राप्त होता है ; जब उन्होंने कंस के दरबार मे मुष्टिक और कूट सदृश महा बलशाली पहलवानों को एक ही घूँसे से मार डाला था।उन्होंने जरासन्ध को सत्रह बार पकड़ कर मार डालना चाहा ; परन्तु हर बार श्रीकृष्ण ने उसे मुक्त करा दिया।इसी प्रकार रुक्मिणी-हरण प्रसंग मे उन्होंने शिशुपाल और उसकी विशाल सेना को अकेले ही पराजित कर दिया था।बाद मे अपमान जनक शब्द बोलने वाले रुक्मी का वध कर दिया था।
           बलराम जी अपने युग के सर्वश्रेष्ठ गदाधर थे।उन्होंने दुर्योधन को भी गदायुद्ध की शिक्षा दी थी।महाभारत-युद्ध के समय उनके समक्ष घोर धर्मसंकट आ गया।वे किसका साथ दें ; क्योंकि एक ओर उनके अनुज श्रीकृष्ण थे और दूसरी ओर उनका प्रिय शिष्य दुर्योधन था।अतः वे तीर्थयात्रा पर चले गये।वे जब वापस हुए तब युद्ध समाप्त हो चुका था।एक बार सभी यदुवंशी परस्पर लड़ रहे थे।बलराम ने उन्हें समझाने का प्रयास किन्तु भवितव्यतावश वे नहीं माने।फलतः सम्पूर्ण यदुवंश लड़कर समाप्त हो गया।अब बलराम जी ने सोचा कि उनका भी जाने का समय हो गया है।अतः वे समुद्र तट पर आसन लगाकर बैठ गये।अन्त मे अपना वास्तविक स्वरूप धारण कर वे जल मे प्रविष्ट हो गये।

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