मानव-जीवन का चरम लक्ष्य शिव-पद-प्राप्ति है।यह पद-प्राप्ति केवल भगवद्भक्ति के द्वारा ही संभव है।पुराणों मे भक्ति के अनेक साधनों का उल्लेख हुआ है।परन्तु शिवपुराण ; विद्येश्वर संहिता 3/21-22 मे श्रवणेन्द्रिय द्वारा भगवान के नाम-गुण-लीला आदि का श्रवण ; वाणी द्वारा उनका कीर्तन और मन के द्वारा उनका मनन करने को भक्ति का महान साधन माना गया है ---
श्रोत्रेण श्रवणं तस्य वचसा कीर्तनं तथा।
मनसा मननं तस्य महासाधनमुच्यते।।
श्रवण --- प्रायः यह देखा जाता है कि मनुष्य जब किसी वस्तु को नेत्रों से प्रत्यक्ष रूप से देखता है तब उसके प्रति प्रवृत्त होता है।परन्तु जिस वस्तु का दर्शन नहीं हो पाता ; उसे सुनकर ही उसकी प्राप्ति की चेष्टा करता है।अतः शिव पद प्राप्ति का प्रथम साधन श्रवण ही है।
कीर्तन --- भगवत् प्राप्ति का दूसरा साधन कीर्तन है।जब हम भगवान के गुणों को जान लेते हैं तो वाणी द्वारा उसका विधिवत् कीर्तन करने मे सक्षम हो जाते हैं।इसमे भगवन्नाम-कीर्तन की विशिष्ट महत्ता है।
मनन --- श्रवण और कीर्तन के बाद मनन की गणना की गयी है।भगवान शिव जी की पूजा ; उनके नाम-जप एवं उनके गुण-रूप-विलास आदि का युक्तिपरायण चित्त के द्वारा जो निरन्तर परिशोधन या चिन्तन होता है ; उसी को मनन कहा जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि इन्हीं तीन साधनों का यथोचित प्रयोग किया जाय तो शिव-पद-प्राप्ति अवश्यम्भावी है।ये तीनों साधन सरल एवं सुगम हैं।इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शिव पद प्राप्ति का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
Wednesday, 24 August 2016
भक्ति के साधन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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