Sunday, 21 August 2016

कलियुग केवल नाम अधारा -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           अन्य युगों की अपेक्षा कलियुग अधिक दोषपूर्ण एवं भयावह है।इस समय अनाचार ; दुराचार ; अत्याचार ; व्यभिचार ; भ्रष्टाचार आदि अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं।चोर उचक्कों का बोल-बाला हो जाता है।सम्पूर्ण व्यवस्थायें अस्तव्यस्त हो जाती हैं।दुःख-दारिद्र्य का साम्राज्य स्थापित हो जाता है।सत्प्रवृत्तियों का ह्रास एवं दुष्प्रवृत्तियों का अभ्युदय होने लगता है।इतना ही नहीं ; बल्कि कलियुग के दोषों की गणना करने लगें तो न जाने कितने पृष्ठ भर जायेंगे ; फिर भी उनका अन्त नहीं होगा।
          यद्यपि कलियुग के दोष असंख्य एवं अनन्त हैं ; फिर भी इस युग मे एक महान् गुण विद्यमान है।वह यह है कि सत्ययुग मे भगवान विष्णु का ध्यान करने से ; त्रेतायुग मे विशाल यज्ञों का सम्पादन करने से और द्वापरयुग मे विधिवत् भगवत्पूजन करने से जो फल प्राप्त होता है ; वह कलियुग मे केवल हरि नाम संकीर्तन से ही प्राप्त हो जाता है ---
   कृते यद् ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखैः।
   द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात्।।
             इस प्रकार कलियुग मे भगवन्नाम-संकीर्तन की असीम महत्ता प्रतिपादित की गयी है।भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने भी श्रीरामचरित मानस मे इसी तथ्य का प्रतिपादन किया है --
    कृतजुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग।
    जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग।।
            अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि हरि के तो हजार नाम हैं।उनमे से किस नाम का संकीर्तन किया जाय ? इसका सामान्य उत्तर तो यही है कि सभी नाम पवित्र ; पुण्यदायक एवं सकल - सिद्धिदायक हैं।फिर भी अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार भगवन्नाम संकीर्तन किया जाय तो अधिक श्रेयस्कर होता है।इसका दूसरा उत्तर यह भी है कि किसी सिद्ध महापुरुष के निर्देशानुसार भगवन्नाम-संकीर्तन किया जाय।इस सन्दर्भ मे गोस्वामी जी की स्पष्ट घोषणा है कि कलियुग मे अन्य समस्त साधनों की अपेक्षा " राम नाम " का अवलम्बन ग्रहण करना अधिक श्रेयस्कर है ---
        नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
        राम   नाम   अवलंबन    एकू।।
            इस प्रकार केवल राम-नाम का संकीर्तन करने से मनुष्य वह सब कुछ पा सकता है ; जिसकी उसे अभिलाषा होती है।परन्तु विरोध किसी भी नाम से नहीं करना चाहिए।

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