प्राणिमात्र को जीवित रहने के लिए आहार की आवश्यकता है।आहार मे अन्न की प्रधानता है।विशेषकर मानव जीवन के लिए अन्न ही सर्वस्व है।पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी प्राणी अन्न से ही उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जीवित रहते हैं।इसीलिए अन्न को ब्रह्मा और जल को विष्णु की संज्ञा प्रदान की गयी है -- अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुः।स्कन्दपुराण के अनुसार अन्न ही ब्रह्मा है और सबके प्राण अन्न मे ही प्रतिष्ठित हैं ---
अन्नं ब्रह्म इति प्रोक्तमन्ने प्राणाः प्रतिष्ठिताः।
अतः स्पष्ट है कि अन्न ही जीवन का प्रमुख आधार है।इतना ही नहीं ; बल्कि अन्न ही प्राण है।इसलिए अन्नदान तो प्राणदान के समान है।शास्त्रों मे अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभूत पुण्यदायक माना गया है।यह धर्म का प्रमुख अंग है।अन्नदान के बिना कोई भी जप ; तप ; यज्ञ आदि पूर्ण नहीं होता है।जो व्यक्ति प्रतिदिन विधिपूर्वक अन्नदान करता है ; वह नदी ; पर्वत और वन सहित सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल प्राप्त कर लेता है।
अन्नदान सर्वश्रेष्ठ दान है।यह सबको प्रसन्न करने वाला ; पुण्यजनक तथा बल-पुष्टि की वृद्धि करने वाला है।तीनों लोकों मे अन्नदान के समान कोई दूसरा दान नहीं है।अन्न से ही प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न के अभाव मे मर जाते हैं।अतः इस प्राणदायक वस्तु का दान अवश्य करना चाहिए।प्रायः सभी सद्ग्रन्थों मे अन्नदान की महिमा वर्णित है।
अन्नदान की कई विधियाँ हैं ; जैसे -- भूखे व्यक्ति को भोजन कराना ; पशु-पक्षियों को चारा-दाना देना ; व्रत ; त्योहार आदि मे भोजन कराना ; तीर्थस्थलों मे भिक्षुकों को भोजन कराना आदि।पके हुए अन्न अर्थात् भोजन का दान करना अधिक श्रेयस्कर होता है।सूखे अन्न का दान करने पर आशंका रहती है कि दान लेने वाला व्यक्ति इसे बेंचकर इसका दुरुपयोग भी कर सकता है।परन्तु पका अन्न दान करने पर दान लेने वाला या तो उसे खा लेगा अथवा किसी पशु-पक्षी को दे देगा।इसमे दुरुपयोग की संभावना कम रहती है।अतः मानव मात्र का परम कर्तव्य है कि अपनी सामर्थ्य एवं सुविधा के अनुसार कुछ न कुछ अन्नदान अवश्य करना चाहिए।इससे परम कल्याण की प्राप्ति होती है।
Tuesday, 16 August 2016
अन्नदान-- महादान -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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