Wednesday, 24 August 2016

मन्त्रजप मे स्थान का महत्त्व -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           किसी भी देवी-देवता का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए उनके मन्त्रों के जप का विधान है।इन मन्त्रों का जप करने के लिए अनेक नियम भी बताये गये हैं।उन नियमों मे जप के स्थान पर भी व्यापक चर्चा की गयी है।मन्त्र-जप का स्थान जितना स्वच्छ ; पुण्यदायक एवं सिद्ध होगा ; मन्त्र भी उतनी शीघ्र फलीभूत एवं सिद्ध होगा।इसलिए किसी भी मन्त्र का जप करने के पूर्व स्थान पर विचार अवश्य करना चाहिए।
            हमारे प्राचीन ऋषियों-महर्षियों ने इस विषय पर बहुत गहन अध्ययन किया और मन्त्र जप के लिए अधिकाधिक उचित स्थान का निर्देश किया है।लिङ्गपुराण 85/106 के अनुसार घर पर किया गया जप सामान्य फलवाला होता है।वहाँ जितनी संख्या मे जप किया जाता है ; फल भी उतना ही मिलता है।परन्तु वही जप यदि गोशाला मे किया जाय तो उसका फल मन्त्र-जप की संख्या से सौ गुना अधिक फल प्राप्त होता है।यदि नदी-तट पर किया जाय तो उसका फल लाख गुना बढ़ जाता है।यदि वही जप भगवान शिव जी के सान्निध्य मे किया जाय तो उसका फल अनन्त गुना होता है ---
   गृहे जपः समं विद्याद् गोष्ठे शतगुणं भवेत्।
   नद्यां शतसहस्रं तु अनन्तं शिवसंनिधौ।।
           इस प्रकार मन्त्र-जप के लिए अन्य स्थलों की अपेक्षा शिव-मन्दिर विशेष उपयुक्त होता है।यह सुविधा प्रायः सभी गाँवों-मुहल्लों मे उपलब्ध हो जाती है।अतः शिव-मन्दिर मे ही जप करने का प्रयास करना चाहिए।

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