चारों युगों मे से सत्ययुग की विशिष्ट महत्ता है।इसमे धर्म अपने चारों चरणों से युक्त रहता है।सत्य ; दया ; तप और दान ये धर्म के चार चरण माने गये हैं।सत्ययुग मे इन चारों का पूर्ण पालन होता है।त्रेतायुग मे इन चारों का चतुर्थांश क्षीण हो जाता है।द्वापर युग मे इनका आधा क्षीण हो जाता है।परन्तु कलियुग मे इनका तीन चौथाई हिस्सा क्षीण हो जाता है।कलियुग के अन्त मे बचा हुआ चतुर्थांश भी समाप्त हो जाता है।इसलिए इस युग मे अधिकांश लोग मायावी ; प्रपञ्ची ; द्वेषी ; क्रोधी ; प्रमादी ; मिथ्याभाषी और नास्तिक हो जाते हैं।इसलिए उनके द्वारा किये गये यज्ञादि भी दूषित हो जाते हैं।इस युग मे प्राकृतिक प्रकोपों का बाहुल्य हो जाता है। दुर्भिक्ष ; अकाल ; अतिवृष्टि ; अनावृष्टि ; वज्रपात आदि के कारण सम्पूर्ण व्यवस्थायें भंग हो जाती हैं।इसके परिणाम स्वरूप मानव-जीवन अत्यन्त कष्टमय हो जाता है।
यद्यपि कलियुग मे अनेक दोष हैं ; किन्तु उसमे एक महान् गुण भी विद्यमान है।इस युग मे भगवन्नाम-संकीर्तन अपेक्षाकृत अधिक फलदायी हो जाता है।इस सन्दर्भ मे विष्णु पुराण मे कहा गया है कि सत्ययुग मे दस वर्ष तक तपश्चरण करने से ; त्रेतायुग मे एक वर्ष तक तप करने से और द्वापर मे एक मास तक तप करने से जिस फल की प्राप्ति होती है ; वही फल कलियुग मे केवल एक दिन-रात अखण्ड भगवन्नाम-संकीर्तन से प्राप्त हो जाता है ---
यत् कृते दशभिर्वर्षैस्त्रेतायां हायनेन तत्।
द्वापरे तच्च मासेन ह्यहोरात्रेण तत् कलौ।।
स्कन्द पुराण मे तो इतना तक कहा गया है कि सत्ययुग मे पूरे युग भर तप करने से ; त्रेतायुग मे पाँच लाख वर्षों तक तप करने से और द्वापर युग मे एक लाख वर्षों तक तप करने से जो फल प्राप्त होता है ; वही फल कलियुग मे एक ही दिन भगवन्नाम-जप या संकीर्तन करने से प्राप्त हो जाता है ---
कृते तु युगपर्यन्तं त्रेतायां लक्षपञ्चकम्।
द्वापरे लक्षमेकं तु दिनैकेन फलं कलौ।।
इस प्रकार हजारों दुर्गुण होते हुए भी कलियुग का यह एक गुण सर्वथा उल्लेखनीय है। उसके इस अद्भुत गुण का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।अतः भगवन्नाम-संकीर्तन करके अधिकाधिक पुण्य-फल प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।इस सुन्दर अवसर का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
Monday, 22 August 2016
कलियुग का गुण --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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