प्राचीन मनीषियों ने नामोच्चारण पर पर्याप्त विचार किया है।उन्होंने अनेक ऐसे नामो का उल्लेख किया है ; जिन्हें प्रत्येक क्षण उच्चारित करना चाहिए।विशेषकर भगवन्नामों का उच्चारण सदैव कल्याणकारी माना गया है।परन्तु अनेक ऐसे व्यक्ति हैं ; जिनका नाम अनावश्यक बार-बार नहीं लेना चाहिए।शास्त्रीय मान्यता के अनुसार अपना नाम ; गुरु का नाम ; भगवद्द्वेषी व्यक्तियों का नाम ; ज्येष्ठ सन्तान का नाम और पत्नी का नाम अनावश्यक नहीं लेना चाहिए ----
आत्मनाम गुरोर्नाम नामातिकृपणस्य च।
श्रेयस्कामो न गृह्णीयाज्ज्येष्ठापत्यकलत्रयोः।।
वस्तुतः इन नामों के स्थान पर कोई वैकल्पिक नाम का उच्चारण करना चाहिए।जैसे ज्येष्ठ पुत्र के लिए लाला या बड़कू आदि विकल्प से काम लेना चाहिए।
Friday, 19 August 2016
निषिद्ध नामोच्चारण --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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