Saturday, 27 August 2016

माङ्गलिक शब्द --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          किसी भी कार्य को आरम्भ करने के पूर्व भगवन्नाम स्मरण करना सनातन परम्परा की प्रमुख विशेषता है।इसीलिए प्रायः सभी लोग कार्यारम्भ के पूर्व अपने इष्टदेव ; कुलदेव अथवा स्थान-देवता का नाम अवश्य लेते हैं।कम से कम " जय भगवान की " तो कहते ही हैं।अधिकाँश लोग प्रथम पूज्य गणेश जी कि नामोच्चारण करते हैं।इसीलिए " श्री गणेश " शब्द को कार्यारम्भ का पर्याय ही मान लिया गया है।प्रायः सुनने को मिलता है कि आज से इस कार्य का श्री गणेश होने जा रहा है।
          इसी प्रकार कवि अथवा लेखक भी अपनी रचनाओं के आरम्भ मे श्रीः ; श्री गणेशाय नमः ; ऊँ ; अथ आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं।ये सभी शब्द अत्यन्त माङ्गलिक हैं।इनका प्रयोग करने से कार्य मंगलमय ढंग से सम्पन्न हो जाता है।प्राचीन ग्रन्थों के आरम्भ मे ऊँ तथा अथ शब्द का प्रयोग बहुत अधिक मिलता है।इसका कारण यही है कि ब्रह्मा के मुख से सर्वप्रथम यही दोनों शब्द निकले थे ; इसलिए ये दोनों शब्द अत्यन्त माङ्गलिक हैं ---
     ओङ्कारश्चाथशब्श्च द्वावेतौ ब्रह्मणा पुरा।
     कण्ठं भित्वा विनिर्यातौ तस्मान्माङ्गलिकावुभौ।।
         अतः प्रत्येक व्यक्ति को कार्यारम्भ करते समय अथवा ग्रन्थ रचना करते समय उपर्युक्त माङ्गलिक शब्दों मे से किसी एक अथवा अनेक का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

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