Wednesday, 10 August 2016

व्यास अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे वेदव्यास के अवतार की गणना सप्तदश स्थान पर की जाती है।इस अवतार मे वे सत्यवती के गर्भ से महर्षि पराशर के द्वारा व्यास रूप मे अवतरित होकर जन - सामान्य की धारणाशक्ति को कम होते हुए देखकर वेद रूपी वृक्ष की अनेक शाखायें निर्मित कर दीं ---
   ततः सप्तदशे जातः सत्यवत्यां पराशरात्।
   चक्रे वेदतरोः शाखा दृष्ट्वा पुंसोऽल्पमेधसः।।
           व्यास जी का जन्म महर्षि पराशर के पुत्र रूप मे माता सत्यवती के गर्भ से हुआ था।उनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप मे होने के कारण उन्हें द्वैपायन भी कहा जाता है।उनका शरीर सुन्दर नीलमणि के समान था।इसीलिए वे कृष्ण द्वैपायन भी कहे जाते हैं।जन्म लेते ही उन्होंने अपनी माता जी से तप करने हेतु जाने की आज्ञा माँगी।माता ने उन्हें रोकने का प्रयास किया।तब उन्होंने वचन दिया -- आवश्यकता पड़ने पर तुम जब भी मुझे स्मरण करोगी ; मै तुम्हारा दर्शन अवश्य करूँगा।इस प्रकार का आश्वासन पाने पर माता ने उन्हें तप हेतु जाने की आज्ञा दी।फिर उन्होंने दीर्घकाल तक तप किया।
           व्यास जी भगवान नारायण के कलावतार होने के कारण अलौकिक शक्ति सम्पन्न थे।प्रारम्भ मे वेद एक ही था।महर्षि अंगिरा ने उसमे से कुछ भाग को अलग कर लिया।वही आगे चलकर अथर्ववेद कहलाया।व्यास जी ने उस एक वेद से ऋचाओं ; गायन योग्य मन्त्रों एवं गद्यभाग को पृथक्-पृथक् संयोजित किया।जिस भाग मे ऋचाओं को संकलित किया गया ; वही ऋग्वेद कहलाया।गद्यभाग को यजुर्वेद और गायन योग्य मन्त्रों को सामवेद कहा गया।व्यास जी ने ही इनका व्यास अर्थात् विभाजन किया था।इसीलिए उन्हें वेदव्यास कहा जाता है।
           वेदव्यास जी अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न थे।उनकी काव्य-प्रतिभा अतुलनीय थी।उन्होंने अष्टादश पुराणों ; उपपुराणों एवं लक्षश्लोकात्मक महाभारत सदृश महान ग्रन्थों की रचना करके अपनी अलौकिक प्रतिभा का परिचय दिया है।महाभारत मे तो उन्होंने श्रुति का सम्पूर्ण सारांश ही भर दिया है।इसीलिए उसे पञ्चम वेद भी कहा जाता है।इसकी रचना के समय व्यास जी श्लोक बोलते जाते थे और गणेश जी उसे लिपिबद्ध करते जाते थे।इसी प्रकार बादरायण-शास्त्र भी वेदव्यास का ही प्रतिभा-प्रसूत अमूल्य ग्रन्थरत्न है।इन्हीं अनगिनत काव्य- विशेषताओं के कारण व्यास जी को वाङ्मयावतार भी कहा जाता है।
           भगवान वेदव्यास जी बहुत दयालु एवं न्यायप्रिय थे।महाभारत युद्ध के पूर्व उन्होंने कौरवों को बहुत समझाया किन्तु किसी ने उनकी बात नहीं मानी।इसीलिए उनका विनाश हुआ।पाण्डव न्याय पर थे।इसलिए व्यास जी ने उन्हें सदैव सहयोग एवं सत्परामर्श प्रदान किया।कौरवों ने जब पाण्डवों को छलपूर्वक राज्य से निष्कासित कर दिया ; तब व्यास जी ने वन मे पाण्डवों से भेंट की और उनके निवास की समुचित व्यवस्था की थी।पाण्डवों को द्रौपदी-स्वयंवर मे जाने की प्रेरणा व्यास जी ने ही दी थी।उन्हीं की कृपा से द्रौपदी को पाण्डवों की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
          महाभारत युद्ध के समय जब धृतराष्ट्र ने युद्ध का समाचार जानने की इच्छा प्रकट की ; तब व्यास जी ने संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान कर धृतराष्ट्र को युद्ध सम्बन्धी सम्पूर्ण समाचारों से अवगत कराया था।इतना ही नहीं ; बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से निःसृत श्रीमद्भगवद्गीता का श्रवण किया और बाद मे लिपिबद्ध करके समाज के समक्ष प्रस्तुत किया ; जो आज भी दिव्यग्रन्थ के रूप मे प्रतिष्ठित है।इस प्रकार लोकहित की दृष्टि से महर्षि वेदव्यास का योगदान सर्वथा सराहनीय है।उन्हीं की कृपा से पुराणों के माध्यम से जनसामान्य को भी भगवान की विविध लीलाओं का परिज्ञान हुआ।अतः ऐसे विशाल-बुद्धिसम्पन्न भगवान वेदव्यास को बारंबार नमन है।

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