Monday, 29 August 2016

पश्चात्ताप --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           मानव जीवन मे अनेक कार्य करने पड़ते हैं।उन कार्यों को करते समय भूलवश कोई न कोई पाप हो ही जाता है।उन पापों के कारण दण्ड स्वरूप कष्ट होना स्वाभाविक है।अतः प्राचीन मनीषियों ने उन पापों के प्रायश्चित्त के लिए अनेक उपायों का विधान किया है।उन उपायों मे व्रत ; अनुष्ठान ; पूजा ; पाठ आदि का निर्देश दिया गया है।उन्हीं मे पश्चात्ताप को भी एक  श्रेष्ठ उपाय बताया गया है।अतः जो व्यक्ति व्रतादि प्रायश्चित्तों को करने मे असमर्थ  हों वे पश्चत्ताप के द्वारा ही पाप शमन कर सकते हैं।महर्षि वेदव्यास के मतानुसार पश्चात्ताप ही पापशमन का सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है।यह समस्त पापों का शोधक माना गया है।इससे पाप की शुद्धि सुनिश्चित रूप से हो जाती है।जो व्यक्ति किसी पाप के बाद पश्चात्ताप करता है ; वही वास्तविक प्रायश्चित्त करता है।पश्चात्ताप के बिना किसी पाप का प्रायश्चित्त सम्भव ही नहीं है।इसीलिए सत्पुरुषों ने समस्त पापों की शुद्धि के लिए जिस प्रकार प्रायश्चित्त का उपदेश किया है ; उसी प्रकार पश्चात्ताप को भी महत्त्व प्रदान किया है।जो कार्य प्रायश्चित्त से होता है ; वही कार्य पश्चात्ताप से भी सम्पन्न हो जाता है ----
   पश्चात्तापः पापकृतां पापानां निष्कृतिः परा।
   सर्वेषां वर्णितं सद्भिः सर्वपापविशोधनम्।।
   पश्चात्तापेनैव शुद्धिः प्रायश्चित्तं करोति सः।
   यथोपदिष्टं सद्भिर्हि सर्वपापविशोधनम्।।

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