Thursday, 11 August 2016

श्रीरामावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे श्रीरामावतार की गणना अष्टादश स्थान पर की गयी है।इस अवतार मे उन्होंने देवताओं का कार्य सम्पन्न करने की इच्छा से राजा रूप मे अवतार ग्रहण किया और सेतुबन्ध ; रावण-वध आदि वीरतापूर्ण अनेक लीलायें कीं ---
   नरदेवत्वमापन्नः सुरकार्यचिकीर्षया।
   समुद्रनिग्रहादीनि चक्रे वीर्याण्यतः परम्।।
         अत्यन्त प्राचीन काल मे स्वायम्भुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने नैमिषारण्य नामक तीर्थ मे गोमती नदी के तट पर एक सहस्र वर्षों तक कठोर तप किया।भगवान विष्णु जी प्रकट हुए और उनसे वर माँगने को कहा।मनु ने कहा -- देवेश्वर ! आप तीन जन्मों तक मेरे पुत्र हों।मै पुत्रभाव से आपका भजन करना चाहता हूँ।भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।कालान्तर मे वही मनु और शतरूपा अयोध्या-नरेश दशरथ एवं महारानी कौसल्या के रूप मे उत्पन्न हुए।महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थीं किन्तु उनसे कोई पुत्र नहीं हुआ।बाद मे श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया ; जिसमे अग्निदेव ने चरु प्रदान किया।उसी को ग्रहण करने से तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं।समय आने पर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न के समय कौसल्या से श्रीराम का आविर्भाव हुआ।उसके बाद कैकेयी से भरत जी तथा सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न अवतरित हुए।
           श्रीराम साक्षात् परब्रह्म परमात्मा के अवतार थे।अवतरण काल मे वे शंख - चक्र -  गदा - पद्म - विभूषित ; वक्षःस्थल मे श्रीवत्स- चिह्नांकित एवं वनमाला - विभूषित थे।उन्हें इस रूप मे देखकर माता कौसल्या भयभीत होकर भगवान की प्रार्थना करने लगीं।भगवान तो पहले से ही अनुकूल थे।वे माता जी को दिव्यस्वरूप का दर्शन कराना चाहते थे।इसीलिए अपने वास्तविक स्वरूप मे प्रकट हुए।बाद मे माता जी के अनुरोध करते ही वे शिशु रूप मे परिणत होकर रुदन करने लगे।पुत्रोत्पत्ति की सूचना मिलते ही सम्पूर्ण नगर मे प्रसन्नता की लहर फैल गयी।विधिवत् जन्मोत्सव मनाया गया।बाद मे सभी संस्कार किये गये।श्रीराम ने अल्पकाल मे ही समस्त विद्याओं मे प्रवीणता प्राप्त कर ली।
           एक बार विश्वामित्र जी अयोध्या आये और अपने यज्ञरक्षा हेतु महाराज दशरथ से श्रीराम को माँगा।राजा ने राम-लक्ष्मण को मुनि की सेवा मे अर्पित कर दिया।मार्ग मे श्रीराम ने ताड़का नामक महाराक्षसी का वध किया।जब वे विश्वामित्र के आश्रम पर पहुँचे तब यज्ञ आरम्भ हुआ।पूर्व की भाँति यज्ञ मे बाधा डालने के लिए सुबाहु और मारीच आदि राक्षस आ गये।श्रीराम ने एक ही बाण से सुबाहु का वध कर दिया और पवनास्त्र से मारीच को समुद्र के उस पार फेंक दिया।
          यज्ञ सम्पन्न होने के बाद महर्षि विश्वामित्र के पास राजा जनक का आमंत्रण आ गया ; जिसमे उनकी अयोनिजा पुत्री सीता का स्वयंवर हो रहा था।राम-लक्ष्मण सहित मुनिवर जनकपुर की ओर चल पड़े।मार्ग मे श्रीराम ने गौतम के शाप से पत्थर बन जाने वाली उनकी पत्नी अहल्या का उद्धार किया ।फिर जनक पुरी मे प्रवेश किया।वहाँ श्रीराम ने शिव जी के दिव्य धनुष को भंग कर सीता की वरमाला का आलिंगन किया।बाद मे चारों भाइयों का विधिवत् विवाह हुआ।
           जनकपुर से अयोध्या आने पर महाराज दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक की योजना बनाई।परन्तु दासी मन्थरा के बहकावे मे आकर कैकेई ने उन्हें चौदह वर्षों का वनवास दे दिया।राम ; लक्ष्मण और सीता वन की ओर चल पड़े।वे तीर्थराज प्रयाग होते हुए चित्रकूट पहुँचे।वहाँ उन्होंने अनेक ऋषियों महर्षियों से सम्पर्क किया।
           इधर पुत्र-वियोग मे महाराज दशरथ का प्राणान्त हो गया।मन्त्रियों ने भरत को सिंहासन पर बैठाना चाहा ; परन्तु भरत ने इसे स्वीकार नहीं किया।वे समस्त अयोध्या-वासियों के साथ श्रीराम को वापस लौटाने के लिए चित्रकूट गये।उन्होंने श्रीराम को लौटाने का भरपूर प्रयास किया ; परन्तु श्रीराम ने पितृ-वचन का निर्वाह करने के उद्देश्य से वापस लौटने से इनकार कर दिया।भरत जी उनकी चरण- पादुका लेकर चले आये और उसे ही राजसिंहासन पर विराजमान कर राजकार्य करते हुए तपस्या करने लगे।इधर श्रीराम चित्रकूट से दण्डकारण्य चले गये।वहाँ पञ्चवटी मे लक्ष्मण द्वारा रावण की बहन शूर्पणखा की नाक-कान कटवा दिया।बाद मे खर-दूषण सहित सहस्रों राक्षसों का वध कर दिया।
         शूर्पणखा ने लंका जाकर रावण को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।रावण अपने मामा मारीच के साथ पञ्चवटी आया।मारीच सुवर्ण-मृग बनकर चरने लगा।सीता ने उस मृग को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की।राम उसे पकड़ने चल दिये।कुछ दूर जाकर उसने हा ! लक्ष्मण ; हा ! लक्ष्मण की आवाज लगाई।सीता ने लक्ष्मण को उनकी सहायता के लिए भेज दिया।इधर सुनसान देखकर रावण ने ब्राह्मण-वेष धारण कर छलपूर्वक सीता का हरण कर लिया।मार्ग मे जटायु ने सीता को मुक्त कराने का प्रयास किया किन्तु रावण ने उसके पंख काटकर घायल कर दिया।जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े।रावण सीता को लेकर लंका पहुँचा और उन्हें अशोक वाटिका मे ठहरा दिया।
          श्रीराम और लक्ष्मण जब कुटी मे वापस आये और वहाँ सीता को नहीं पाया तब उनकी खोज करते हुए भटकने लगे।मार्ग मे घायल जटायु ने सम्पूर्ण वृत्तान्त बताया और श्रीराम की गोद मे ही अन्तिम श्वास ली।श्रीराम ने उनका अन्तिम संस्कार किया और सम्पूर्ण पृथ्वी को राक्षस-विहीन करने का संकल्प लिया।फिर सीतान्वेषण करते हुए ऋष्यमूक पर्वत के समीप आये।वहाँ हनुमान जी ने सुग्रीव से उनकी मित्रता कराई।बाद मे श्रीराम ने वानरराज बालि का वध करके सुग्रीव को राजा बनाया।सुग्रीव ने हनुमान ; जाम्बवन्त ; अंगद सहित अनेक वानर-भालुओं को सीतान्वेषण करने के लिए भेजा।हनुमान जी ने समुद्र लाँघकर लंका मे विभीषण से मिलने के बाद सीता को ढूँढ लिया और उन्हें श्रीराम के कुशल-क्षेम से अवगत कराया।फिर अशोक-वाटिका को उजाड़ने लगे और रोकने पर अक्षय कुमार का वध कर दिया।बाद मे मेघनाद द्वारा स्वयं ही बँधकर रावण के समक्ष प्रस्तुत हुए।रावण के आदेशानुसार हनुमान की पूछ मे आग लगा दी गयी।उन्होंने सम्पूर्ण लंका को जला डाला।फिर वापस लौटकर श्रीराम से सीता का समाचार सुनाया।
            बाद मे सुग्रीव आदि वानर-भालुओं सहित श्रीराम समुद्र तट पर आये।वहीं विभीषण से भेंट हुई।श्रीराम ने उन्हें लंका का भावी राजा घोषित कर दिया।बाद मे नल-नील के सहयोग से पुल बनाकर समुद्र पार किया।वानरों एवं राक्षस सेना के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया।मेघनाद ने नागपाश द्वारा राम-लक्ष्मण को बाँध दिया।बाद मे गरुड़ ने उन्हें बन्धनमुक्त किया।अब महाबली कुम्भकर्ण युद्धक्षेत्र मे आ गया।उसने असंख्य वानरों का अन्त कर दिया।चारों ओर हाहाकार मच गया।अन्त मे श्रीराम ने उसका वध कर दिया।अगले दिन मेघनाद आया।भयानक युद्ध के बाद उसने शक्ति-प्रहार से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया।वैद्यराज सुषेण के निर्देशानुसार हनुमान जी संजीवनी बूटी लाये ; जिसका सेवन करते ही लक्ष्मण जी पुनर्जीवित हो गये।बाद मे लक्ष्मण ने ही मेघनाद का अन्त किया।
            अन्त मे युद्ध करने के लिए रावण आया।वह उत्कृष्ट रथ पर सवार था।अतः देवताओं ने श्रीराम के लिए भी दिव्य रथ भेजा ; जिस पर सवार होकर श्रीराम रणक्षेत्र मे आये।दोनों के मध्य भयानक युद्ध आरम्भ हो गया।राम ने रावण के सिर काट डाले परन्तु वे भगवान शिव जी के वरदान स्वरूप पुनः जुड़ जाते थे।अन्त मे श्रीराम ने एक अमोघ दिव्यास्त्र के द्वारा उस अजेय दुराचारी का अन्त कर दिया।आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी।सर्वत्र प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी।
           इसी समय सीता सहित अग्निदेव प्रकट हुए और उन्हें श्रीराम की सेवा मे समर्पित कर दिया।ब्रह्मा जी ने समस्त मृत वानर-भालुओं को पुनर्जीवित कर दिया।जिस पुष्पक विमान को रावण ने कुबेर से छीन लिया था ; उसे श्रीराम के पास लाया गया।उस पर अपने समस्त मित्रों एवं सहयोगियों सहित श्रीराम ; लक्ष्मण और सीता जी सवार हुए और अयोध्या की ओर चल पड़े।नगर के समीप पहुँचने पर हनुमान जी ने भरत जी को श्रीराम के शुभागमन की सूचना दी।सम्पूर्ण नगर वासियों सहित भरत जी ने श्रीराम की अगवानी की।बाद मे यथोचित समय पर श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ।उन्होंने सुदीर्घकाल तक धर्मपूर्वक शासन किया।उनके शासन-काल मे सभी लोग सुखी और सम्पन्न थे।किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार का अभाव नहीं था।रामराज्य सम्पूर्ण विश्व के लिए एक उत्तम आदर्श था।

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