भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे हंसावतार का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
एक बार भगवान ब्रह्मा जी अपनी दिव्य सभा मे विराजमान थे।उसी समय उनके मानस पुत्र सनक ; सनन्दन ; सनातन और सनत्कुमार आ गये।उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर उनसे एक जटिल संशय की अभिव्यक्ति की।ब्रह्मा जी अत्यन्त सुयोग्य होते हुए भी उनके संशय का निराकरण नहीं कर सके।अतः उस संशय के निवारणार्थ भगवान श्रीहरि का स्मरण किया।
ब्रह्मा जी के असमंजस को देखकर भगवान श्री हरि जी हंस के रूप मे प्रकट हो गये।सब ने उनका यथोचित सत्कार किया। इसके बाद उन्होंने अपने दिव्य उपदेश के द्वारा सनकादि मुनियों के संशय का निवारण कर दिया।उनके उत्तर से जब सब लोग सन्तुष्ट हो गये तब भगवान अदृश्य हो गये और अपने धाम को चले गये।
Tuesday, 23 August 2016
हंस अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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