Friday, 26 August 2016

दिवसानुसार पूजन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          शास्त्रों मे प्रत्येक दिन के अधिपतियों का निर्धारण करने के बाद उनके द्वारा प्राप्य वस्तुओं का भी वर्णन किया गया है।शिवपुराण ; विद्येश्वर संहिता ; के चतुर्दश अध्याय मे इस विषय पर व्यापक चर्चा की गयी है।उक्त ग्रन्थ के अनुसार इनका विवरण इस प्रकार है ---
रविवार --- इस दिन के अधिष्ठातृ देवता सूर्यदेव हैं।इन्हें आरोग्य का दाता माना गया है।अतः आरोग्य प्राप्ति के लिए रविवार को सूर्य पूजन अवश्य करना चाहिए।इस दिन अन्य देवताओं तथा ब्राह्मणों के लिए विशिष्ट वस्तुयें भी समर्पित करनी चाहिए।इससे विशिष्ट फल की प्राप्ति एवं पापों की शान्ति होती है।
सोमवार ---- इस दिन के अधिष्ठातृ चन्द्रदेव हैं।इन्हें सम्पत्ति-दाता देवता माना गया है।अतः सम्पत्ति प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को चाहिए कि वे सोमवार को लक्ष्मी आदि की पूजा करें तथा सपत्नीक ब्राह्मणों को घृत मे तले हुए अन्न ( पूड़ी आदि ) का भोजन करायें।
मंगलवार --- मंगलवार के अधिष्ठातृ मंगल हैं।ये व्याधियों का निवारण करने वाले देवता माने गये हैं।अतः रोगों की शान्ति के लिए मंगलवार को काली आदि की पूजा करनी चाहिए।साथ ही ब्राह्मणों को उड़द ; मूँग एवं अरहर की दाल आदि से युक्त अन्न का भोजन कराना चाहिए।इससे शीघ्र लाभ होता है।
बुधवार --- बुधवार के देवता बुध देव हैं।ये पुष्टि प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं।इस दिन दधि - युक्त अन्न से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए।इससे पुत्र ; मित्र ; कलत्र आदि की पुष्टि होती है।
गुरुवार --- गुरुवार के अधिष्ठातृ बृहस्पति जी हैं।ये आयु-वृद्धि करने वाले देवता माने जाते हैं।अतः दीर्घायु प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को चाहिए कि वे देवताओं की पुष्टि के लिए वस्त्र ; यज्ञोपवीत तथा घृत मिश्रित खीर से यजन-पूजन करें।
शुक्रवार --- शुक्रवार के अधिष्ठातृ शुक्र जी हैं।इन्हें भोग-प्रदाता देवता माना जाता है।अतः भोग चाहने वाले व्यक्तियों को चाहिए कि वे शुक्रवार को एकाग्रचित्त होकर देवताओं का पूजन करे तथा ब्राह्मणों की तृप्ति के लिए षड् रस युक्त अन्न प्रदान करे।इसी प्रकार स्त्रियों की प्रसन्नता के लिए सुन्दर वस्त्र आदि का विधान करे।
शनिवार --- शनिवार के अधिष्ठातृ देवता शनि देव हैं।ये अपमृत्यु का निवारण करने वाले देवता हैं।इस दिन रुद्र आदि देवताओं का पूजन करना चाहिए।साथ ही तिल के हवन और दान से देवताओं को सन्तुष्ट करके ब्राह्मणों को तिल-मिश्रित अन्न का भोजन कराना चाहिए।

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