शास्त्रों मे मानव-हित के लिए जितने साधन बताये गये हैं ; उनमें व्रतों का महत्त्व पूर्ण स्थान है।प्रत्येक व्रत मे उस व्रत से सम्बन्धित देवता के पूजन के बाद उनके मन्त्र का जप भी करना चाहिए।परन्तु अनेक बार ऐसी स्थिति आती है कि जपनीय मन्त्र की उपलब्धि नहीं हो पाती है।ऐसी स्थिति मे शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि समस्त व्रतों मे देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी का पूजन करके विधि पूर्वक पञ्चाक्षरी विद्या का जप करना चाहिए ---
सर्वव्रतेषु सम्पूज्य देवदेवमुमापतिम्।
जपेत् पञ्चाक्षरीं विद्यां विधिनैव द्विजोत्तमाः।।
पञ्चाक्षरी विद्या का अभिप्राय " नमः शिवाय " है।यदि इस मन्त्र के पूर्व " ऊँ " लगा दिया जाय तो अधिक शुभ होता है।इस प्रकार प्रत्येक व्रत के बाद " ऊँ नमः शिवाय " मन्त्र का जप यथेष्ट संख्या मे किया जाय तो वह व्रत पूर्ण हो जाता है।इससे लाभ की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है।उसे अन्य किसी भी मन्त्र की आवश्यकता नहीं रहती है।केवल इस मन्त्र के जप से ही अभीष्ट सिद्धि हो जाती है।जप की दृष्टि से भी यह मन्त्र सरल है।इसके जप के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।केवल श्रद्धा और भक्ति की भावना ही अपेक्षित है।
यह महामन्त्र शिव जी का वाचक है और शिव जी इसके वाच्य हैं।जो व्यक्ति इस मन्त्र का जप करता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।उसे किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है।उसे कभी भी दुःख नहीं होता है।उसके सम्पूर्ण पाप समूल नष्ट हो जाते हैं।अन्त मे उसे दुर्लभ शिव धाम की प्राप्ति हो जाती है।अतः प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति को चाहिए कि वह विभिन्न प्रकार के व्रतों मे अथवा अन्य अवसरों पर इस महामन्त्र का जप करके लाभ उठाये।
Tuesday, 30 August 2016
व्रतों मे मन्त्र जप --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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