मुझे दो दिन पूर्व सूचना मिली कि मेरे ग्राम से तीन किमी दूरी पर स्थित ग्राम - नीबी-शाना ( तहसील - चायल ; जनपद - कौशाम्बी ) के एक तालाब मे पक्की दीवार मिली है।मैने उसका निरीक्षण किया तो अनेक महत्वपूर्ण प्राप्त हुए।इस तालाब की खोदाई कुछ दिनो पूर्व हो चुकी थी।अभी पाँच दिन पहले ग्राम प्रधानके पति श्री रामविशाल पासवान ने जिज्ञासावश खोदाई कराई।तालाब मेपूर्व-दक्षिण कोन के पास लगभग छः इंच नीचे एक दीवार के चिह्न मिलने लगे।लोगों ने सम्हालकर पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग पचीस - तीस फीट तक खोदाई की।लगातार दीवार मिलती गयी।उसके आगे भी मिलने के संकेत हैं।इस दीवार के पूर्वी और पश्चिमी छोर के पास धन के आकार की दीवार बनी है।इससे यही प्रतीत होता है कि दीवार के उत्तर और दक्षिण दोनो ओर दो विशाल भवन बने रहे होंगे।
इस स्थान से लगभग पचास फीट दूरी पर तालाब के दक्षिण-पश्चिम कोन के पास भी खोदाई की गयी तो वहाँ भी दक्षिण से उत्तर की ओर बनी हुई पक्की दीवार मिली है।इस स्थान पर खोदाई कुछ कुछ स्थान पर की गयी है। दूर तक सीधी दीवार बनी है।एक स्थान पर बिल्कुल सुरक्षित दीवार मौजूद है।इस दीवार की लगभग पचास फीट तक खोदाई की गयी है।इसके आगे भी दीवार होने के संकेत उपलब्ध हैं।
ये दीवारें पक्की ईंटों की बनी हैं।ईटें पुरानी एवं चपटे ( भू पथी ) आकार की हैं।आज के सैकड़ों वर्ष पूर्व इसी प्रकार की ईंटें बनती थीं।मैने लगभग इसी आकार की ईंटें कौशाम्बी के खण्डहरों मे भी देखा है।यहाँ ध्यान देने योग्य है कि ये दीवारें पृथ्वी-तल से लगभग आठ-दस फीट नीचे मिली हैं।
ये दीवारें किसी प्राचीन स्नानागार अथवा विशाल भवन की हो सकती हैं।तालाब के पूर्वी-दक्षिणी तट के समीप बनी दीवार से प्रतीत होता है कि इस स्थान पर न्यूनतम दो विशाल रहे होंगे।
ग्राम प्रधान ने एस डी एम महोदय को सूचना दी।एस डी एम महोदय ने तुरन्त खोदाई रुकवा दी और उच्चाधिकारियों सहित पुरातत्त्व विभाग को भी सूचना दे दी है।अब इस दीवार के इतिहास की वास्तविक जानकारी तो पुरातत्त्व विभाग ही दे सकेगा।
आज के दो वर्ष पूर्व इस स्थान से लगभग दस किमी उत्तर-पूर्व दिशा मे मनौरी और सैयदसरावाँ के बीच स्थित चिल्ला सहबाजी के एक तालाब की खोदाई मे भी एक विशाल पक्की दीवार मिली थी।ये सभी वस्तुयें कौशाम्बी की महती पुरातात्त्विक सम्पदा की सूचक हैं।
Thursday, 31 March 2016
नीबी शाना तालाब मे दीवार मिली -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
कल्प -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
पौराणिक मान्यता के अनुसार " कल्प " भारतीय काल-गणना मे समय-मापन की विशालतम इकाई है।इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है ----
चौबीस घण्टे का एक अहोरात्र ( दिन-रात) होता है।तीस अहोरात्र का एक मास और बारह मास या 360 अहोरात्र का एक वर्ष होता है।इस वर्ष को ही मानवीय वर्ष कहा जाता है।मैने पिछले लेख "युग" मे स्पष्ट किया है कि इसी मानवीय वर्ष के हिसाब से चार लाख बत्तीस हजार (432000) वर्षों का कलियुग ; आठ लाख चौंसठ हजार (864000) वर्षों का द्वापर ; बारह लाख छियानबे हजार (1296000) वर्षों का त्रेता और सत्रह लाख अट्ठाईस हजार (1728000) वर्षों का सत्ययुग होता है।इन चारो युगों के समय के योग को एक चतुर्युग कहा जाता है।एक चतुर्युग मे 432000+864000+1296000+1728000=4320000 ( तैंतालीस लाख बीस हजार ) वर्ष होते हैं।यही चारों युग जब एक हजार बार व्यतीत हो जाते हैं ; तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।अर्थात् एक हजार चतुर्युग बराबर ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।ब्रह्मा जी के एक दिन ( या एक हजार चतुर्युग ) को ही एक कल्प कहा जाता है।इस प्रकार एक कल्प मे 4320000×1000=4320000000 ( चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष होते हैं।
ब्रह्मा जी का दिन जितने वर्षों का होता है ; उतने ही वर्षों की रात्रि भी होती है।उनका एक दिन बीतने के बाद प्रलय हो जाती है।यह प्रलय-काल ही उनकी रात्रि है।रात्रि व्यतीत होने के बाद फिर नवीन सृष्टि आरम्भ होती है।इस समय तक ब्रह्मा जी के पचास वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और एक्यावनवें वर्ष का प्रथम कल्प चल रहा है।इस कल्प का नाम श्वेतवाराह कल्प है।इस कल्प के सत्ताईस चतुर्युग व्यतीत हो चुके हैं।अट्ठाईसवाँ चतुर्युग चल रहा है।इस 28 वें चतुर्युग के भी तीन युग बीत चुके हैं और चौथा अर्थात् कलियुग चल रहा है। विक्रम सम्वत् 2073 लगते ही इस कलियुग के भी 5117 वर्ष व्यतीत हो जायेंगे।
Wednesday, 30 March 2016
युग -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
सनातन परम्परा मे समय की एक निर्धारित अवधि को युग कहा जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार युग चार हैं ; जो क्रमशः सत्ययुग ; त्रेता ; द्वापर एवं कलियुग के नाम से प्रसिद्ध हैं।इन चारों युगों के सन्ध्या-सन्ध्यांश सहित मान का योग बारह हजार दिव्य वर्ष बताया गया है।इसमे सत्ययुग आदि चारों युगों का अनुपात क्रमशः 4:3:2:1 का होता है ---
दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम्।
चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे।।
चत्वारित्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम्।
दिव्याब्दानां सहस्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कलियुग के दो गुना द्वापर ; तीन गुना त्रेता और चार गुना सत्ययुग होता है।इन युगों का मान मानवीय वर्षों मे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है ---
मानवीय हिसाब से 24 घण्टे का एक दिन ( दिन-रात ) होता है।तीस दिनो का एक मास और 360 दिनो का एक वर्ष होता है।इसी को मानवीय वर्ष कहा जाता है।मनुष्यों के 360 दिनो के बराबर एक दिव्य दिन होता है।इससे स्पष्ट है कि एक दिव्य दिन मानवीय दिन से 360 गुना होता है।
ऊपर चारों युगों का सम्मिलित मान 12000 दिव्य वर्ष बताया गया है।इसका 360 गुना कर देने पर चारों युगों का मान 12000×360=4320000 ( तैंतालीस लाख बीस हजार ) मानवीय वर्ष होता है।इसमे से 4 भाग सत्ययुग का ; 3 भाग त्रेता का ; 2 भाग द्वापर का और 1 भाग कलियुग का होता है।इस प्रकार कुल भागों की संख्या 4+3+2+1=10 हुई।इसमे से कलियुग केवल एक भाग ( कुल का दसवाँ भाग ) होता है।अतः 4320000÷10=432000 (चार लाख बत्तीस हजार ) वर्ष कलियुग का मान हुआ।इसका दो गुना अर्थात् 432000×2=864000 ( आठ लाख चौसठ हजार ) वर्ष द्वापर का मान हुआ।कलियुग का तीन गुना अर्थात् बारह लाख छियानबे हजार वर्ष त्रेता का मान हुआ।कलियुग का चार गुना अर्थात् सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्ष सत्ययुग का मान सिद्ध हुआ।
Tuesday, 29 March 2016
सप्तर्षि मण्डल
आकाश मे उत्तर दिशा की ओर स्थित सात तारों के मण्डल को सप्तर्षि-मण्डल कहा जाता है।यह मण्डल सदैव ध्रुव तारा के सीध मे होता है।इसमे सात तारे होते हैं।चार तारे चौकोर चार कोनो पर होते हैं।शेष तीन तारे नीचे की ओर लटकती हुई तिरछी रेखा मे स्थित होते हैं।इस प्रकार सप्तर्षि-मण्डल का आकार पूँछ सहित एक पतंग की भाँति होता है।इन तारों के नाम सात महर्षियों के नाम पर हैं।
ब्रह्मा जी के एक दिन को एक कल्प कहा जाता है।प्रत्येक कल्प मे चौदह मन्वन्तर होते हैं।प्रत्येक मन्वन्तर मे भिन्न-भिन्न सप्तर्षि होते हैं।इस समय सातवाँ मन्वन्तर चल रहा है।इस मन्वन्तर के सप्तर्षियों के नाम इस प्रकार हैं --- वसिष्ठ ; काश्यप ; अत्रि ; जमदग्नि ; गौतम ; विश्वामित्र और भरद्वाज ---
वसिष्ठःकाश्यपोऽथात्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।
विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन्।।
ये सातो ऋषि पवित्रात्मा एवं एवं तपोधन हैं।प्रातःकाल इनका नाम स्मरण करने से सम्पूर्ण दिन मङ्गलमय रहता है।
Monday, 28 March 2016
पुरुषोत्तमी कामदा एकादशी व्रत
यह व्रत पुरुषोत्तम मास के दूसरे पक्ष की एकादशी को किया जाता है।यह एकादशी समस्त कामनायें पूर्ण करने वाली होने के कारण कामदा कहलाती है।
कथा ---
------ एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि कोई ऐसा व्रत बतायें ; जिसे करने मनुष्य जीवन-मुक्त होकर विष्णु-स्वरूप हो जाय।उस समय श्रीकृष्ण ने इसी व्रत को बताया था।
विधि ---
------- इसमे दशमी को एकभुक्त ; एकादशी को निर्जला एवं द्वादशी को पारण किया जाता है।
माहात्म्य --
------------ इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह निष्पाप होकर भोग और मोक्ष दोनो को प्राप्त कर लेता है।
पुरुषोत्तमी कमला एकादशी व्रत
तह व्रत पुरुषोत्तम मास ( मलमास ) के प्रथम पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
कथा --
----- अवन्तीपुरी मे शिवशर्मा नामक ब्राह्मण के पाँच पुत्र थे।सबसे छोटा पुत्र जयशर्मा बहुत पापाचारी था।इसलिए घर वालों ने उसे निर्वासित कर दिया।वह भटकता हुआ प्रयाग आ गया।वहाँ त्रिवेणी-स्नान करके हरिमित्र मुनि के आश्रम मे पहुँच गया।वहाँ एकादशी व्रत का माहात्म्य सुना और वहीं व्रत किया।अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी जी उसके समक्ष प्रकट हुईं और उसका उद्धार कर दिया।
विधि ---
------ व्रती स्नानादि करके भगवान नारायण का पूजन करे।उपवास एवं रात्रि-जागरण के बाद दूसरे दिन विष्णु-पूजन एवं ब्राह्मण-भोजन के पश्चात् स्वयं भोजन करे।
माहात्म्य ----
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य पूर्णतः निष्पाप होकर लक्ष्मी जी की अनुकूलता प्राप्त करता है।
रमा एकादशी व्रत
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है।
कथा --
----- प्राचीन काल मे मुचुकुन्द नामक राजा की पुत्री चन्द्रभागा का विवाह शोभन के साथ हुआ।एक बार शोभन अपनी ससुराल आया।वहाँ एकादशी व्रत करने के लिए ढिंढोरा पिटवाया जा रहा था।अतः शोभन ने भी व्रत किया।किन्तु भूख के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।बाद मे उसका जन्म मन्दराचल पर्वत पर स्थित एक नगर मे हुआ।एक बार मुचुकुन्द नगर के एक व्यक्ति ने पर्वतीय नगर मे शोभन को देखा और इसकी सूचना चन्द्रभागा को दी।चन्द्रभागा अपने पति के पास गयी और सुख पूर्वक रहने लगी।यह सब उस एकादशी व्रत का ही प्रभाव था।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके भगवान का पूजन करे।उपवास और रात्रि जागरण के बाद दूसरे दिन पारणा करे।
माहात्म्य --
----------- यह एकादशी बहुत उत्तम एवं सभी पापों का हरण करने वाली है।
करक चतुर्थी व्रत ( करवा चौथ )
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है।इसमे चन्द्रोदय-व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है।
कथा --
----- प्राचीन काल मे शाकप्रस्थपुर की एक ब्राह्मणी ने इस व्रत को किया।इसमे चन्द्रोदय के बाद भोजन करना होता है।किन्तु वह भूख से व्याकुल हो गयी।उसके भाइयों ने वृक्ष की आड़ से कृत्रिम प्रकाश करके चन्द्रोदय दिखाकर उसे भोजन करवा दिया।इससे उसका पति अलक्षित हो गया।बाद मे उसने एक वर्ष तक चतुर्थी व्रत किया ; जिससे उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके मिट्टी की वेदी पर पीपल का वृक्ष बनाये।उसके नीचे शिव ; पार्वती ; कार्तिकेय आदि की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन करे।चन्द्रोदय होने पर चन्द्रार्घ्य प्रदान कर भोजन करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
Sunday, 27 March 2016
कार्तिक स्नान
माघ एवं वैशाख की भाँति कार्तिक स्नान का भी बहुत महत्व है।जो व्यक्ति कार्तिक मास मे नित्य प्रातः स्नान एवं एकभुक्त-व्रत करता है ; उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।यह स्नान आश्विन शुक्ला पूर्णिमा से आरम्भ कर कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा तक किया जाता है।स्नान के लिए घर की अपेक्षा नदी या कोई तीर्थस्थल अधिक उपयुक्त होता है।परन्तु जिस स्थान पर स्नान करे ; वहीं पर गंगा का स्मरण अवश्य कर लेना चाहिए।
प्रातः स्नान मे जब दो घटी ( 48 मिनट ) रात्रि शेष रहे ; तभी जलाशय मे नियमपूर्वक स्नान करना चाहिए।सूर्योदय काल का स्नान मध्यम श्रेणी का माना जाता है।जब तक कृत्तिका अस्त न हो ; तभी तक स्नान का महत्व है।विलम्ब से किया गया स्नान कार्तिक-स्नान की श्रेणी मे नहीं आता है।स्नानोपरान्त देवपूजन अवश्य करना चाहिए।
शरत्पूर्णिमा
आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शरत्पूर्णिमा कहा जाता है।यह पूर्णिमा प्रदोष-काल और निशीथ-काल मे भी विद्यमान हो तो अधिक शुभ होता है।
कथा --
------- प्राचीन काल मे एक वणिक् की दो पुत्रियाँ पूर्णिमा व्रत करती थीं।छोटी पुत्री ने व्रत भंग कर दिया ; जिससे उसके बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे।उसने इसका कारण जानना चाहा तो विद्वानो ने व्रतभंग दोष बतलाया।उसने पुनः व्रत किया फिर भी उसका नवजात पुत्र मृत हो गया।उसने बड़ी बहन को बुलाया।उसके स्पर्श करते ही मृत पुत्र जीवित हो गया।उसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत का व्यापक प्रचार किया।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके अपने इष्टदेव का पूजन करे।रात्रि मे गोदुग्ध की खीर बना कर अर्धरात्रि मे भगवान को समर्पित करे।उसी समय चन्द्रमा का पूजन कर खीर समर्पित करे।दूसरे दिन प्रातः उसी खीर को प्रसाद रूप मे ग्रहण करे।इस खीर मे चन्द्रमा की अमृतमयी किरणे पड़ने से पूरी खीर अमृतमय हो जाती है।
माहात्म्य --
----------- इस दिन स्नान दान व्रत आदि करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
Saturday, 26 March 2016
कोजागरी
यह पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष मे निशीथ-व्यापिनी पूर्णिमा को मनाया जाता है।
कथा --
------- शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन रात्रि के समय लक्ष्मी और इन्द्र भ्रमण पर निकलते हैं और पूछते हैं कि कौन जाग रहा है -- को जागर्ति।यदि उस समय उन्हें दीपकों का प्रकाश दिखाई पड़ता है तब वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
विधि ---
------ व्रती स्नानादि करके लक्ष्मी इन्द्र कुबेर आदि का पूजन करे।रात्रि मे घर मन्दिर मार्ग आदि मे दीपक जलाकर रात्रि-जागरण करे।दूसरे दिन इन्द्र का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य ---
----------- इस दिन लक्ष्मी कुबेरादि का पूजन करने से इन देवों की अनुकम्पा प्राप्त होती है।
पद्मनाभ द्वादशी व्रत
यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी को किया जाता है।
कथा --
------ पौराणिक मान्यता के अनुसार आश्विन शुक्ला द्वादशी को क्षीरशायी भगवान विष्णु जी जागृत होने के लिए अँगड़ाई लेते हैं और ब्रह्मा जी ओंकार ध्वनि करते हैं।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके भगवान पद्मनाभ का पूजन करके उपवास एवं रात्रि-जागरण करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
पापांकुशा एकादशी व्रत
यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है।यह पापियों के पापों को अंकुश की भाँति वशवर्ती कर लेती है।इसलिए इसको पापांकुशा एकादशी कहा जाता है।
कथा ---
------ प्राचीन काल मे विन्ध्याचल पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था।वह बहुत क्रूर एवं दुर्व्यसनी था।एक बार यमदूतों ने उसके पास जाकर कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अन्तिम दिन है।इसे सुनकर वह बहुत भयभीत हुआ और अंगिरा ऋषि के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई।ऋषि ने उसे पापांकुशा एकादशी व्रत करने को कहा।संयोगवश उसी दिन वह एकादशी थी।बहेलिए ने विधिवत् व्रत किया ; जिससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति हुई।
विधि --
----- व्रती स्नानादि से निवृत्त होकर पद्मनाभ संज्ञक भगवान विष्णु का पूजन करे।उपवास और रात्रि-जागरण के बाद दूसरे दिन पारणा करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य निष्पाप होकर धन ; धान्य ; स्त्री ;पुत्र ; पौत्र ; स्वर्ग ; मोक्ष आदि सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
Friday, 25 March 2016
दिग्दशमी व्रत
यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को किया जाता है।
कथा --
------ इस व्रत का वर्णन भगवान ब्रह्मा जी ने व्यास जी से किया था।
विधि --
----- व्रती स्नानादि करके एकभुक्त व्रत करे।इस प्रकार एक वर्ष तक व्रत करके दस गौओं का दान करे और दिक्पालों को स्वर्णमेखला निवेदित करे।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी बन जाता है।
अपराजिता पूजन
अपराजिता पूजन आश्विन शुक्ला दशमी को करना चाहिए।
कथा ---
------ स्कन्दपुराण के अनुसार मनुष्य को अपने कल्याण और विजय-प्राप्ति के लिए अपराजिता का पूजन करना चाहिए।नवमी के शेष युक्त दशमी को पूजा करने से जयवर्धिनी अपराजिता देवी मनुष्य को विजय अवश्य प्रदान करती हैं।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके अक्षतों से बनाये गये अष्टदल कमल पर मिट्टी की बनी प्रतिमायें स्थापित करे।फिर ऊँ अपराजितायै नमः से अपराजिता का ; ऊँ क्रियाशक्त्यै नमः से जया का और ऊँ उमायै नमः से विजया का आवाहन एवं पूजन करे।फिर हल्दी से रँगे वस्त्र मे दूर्वा और सरसों रखकर रक्षा बनाये।उसका पूजन कर उसे दक्षिण भुजा मे धारण करे।
माहात्म्य --
----------- इससे मनुष्य सदैव अपराजित रहता है।
उल्का नवमी व्रत
यह व्रत आश्विन शुक्ला नवमी को किया जाता है।
कथा --
------- इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।
विधि ---
------ व्रती स्नानादि करके पितृदेवी की पूजा करे।फिर गन्धाक्षत आदि से भैरव-प्रिया चामुण्डा देवी का पूजन कर प्रार्थना करे।उसके बाद विषम संख्या मे कुमारियों को भोजन ; नीला कञ्चुक ; आभूषण ; दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करे।स्वयं भी दिन रहते भोजन करे।
माहात्म्य --
----------- इसके प्रभाव से मनुष्य को शत्रु ; चोर ; अग्नि ; भूत ; प्रेत आदि का भय नहीं होता है।
विजया दशमी
यह पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को मनाया जाता है।हेमाद्रि के अनुसार सूर्योदय काल मे दशमी किञ्चिन्मात्र हो ; उसके बाद सम्पूर्ण एकादशी हो और अपराह्न काल मे श्रवण नक्षत्र हो तो उसे विजया दशमी कहते हैं।इस दिन सन्ध्याकाल मे किञ्चित् तारों के उदय होने का समय विजयकाल कहलाता है।यह सभी कार्यों एवं अर्थों की सिद्धि करने वाला है।
कथा ---
----- भगवान श्रीराम ने इसी विजयकाल मे लंका पर चढाई करने के लिए प्रस्थान किया था।इसीलिए उनकी विजय हुई थी।
विधि --
------ व्रती स्नानादि से निवृत्त होकर गणपत्यादि देवों का पूजन कर श्री रामजानकी का पूजन करे।उसके बाद अस्त्र-शस्त्र ; अपराजिता ; शमी ; कचनार आदि का पूजन करे।
माहात्म्य --
----------- इससे उपर्युक्त देवी-देवताओं की अनुकम्पा प्राप्त होती है।
Thursday, 24 March 2016
जीवत्पुत्रिका व्रत
यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को किया जाता है।इसे पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्रों के जीवन-रक्षण हेतु करती हैं।
कथा ---
------ एक बार महर्षि जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे।उसी समय उन्हें करुण-क्रन्दन सुनाई पड़ा।वे समीप गये तो ज्ञात हुआ कि आज गरुड़ के भोजन हेतु शंखचूड सर्प की बारी है।इसीलिए उसकी माता रो रही है।जीमूतवाहन को दया आ गयी।उन्होंने शंखचूड को रोककर स्वयं गरुड़ का भोजन बनना स्वीकार कर लिया।
जीमूतवाहन नियत स्थान पर लेट गये।गरुड़ आये और उनका मांस नोच कर खाने लगे।जब पर्याप्त मांस खा गये तब उन्हें ज्ञात हुआ कि ये परोपकारवश आत्मवलिदान कर रहे हैं।गरुड़ को बहुत पश्चात्ताप हुआ।उन्होंने जीमूतवाहन को मुक्तकर वर मागने को कहा।जीमूतवाहन ने कहा कि अब तक मारे गये सभी सर्पों को जीवित कर दें और भविष्य मे इन्हें न मारने का वचन दें।गरुड़ ने स्वीकार कर लिया।उस दिन आश्विन कृष्णा अष्टमी थी। उस दिन सर्प-माता के पुत्र की रक्षा हुई थी।इसीलिए पुत्र-रक्षा हेतु इस व्रत का प्रचलन हुआ।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके निर्जला व्रत करे।रात्रि जागरण के बाद दूसरे दिन पारणा करे।
माहात्म्य ---
----------- इसके प्रभाव से पुत्र सुखी एवं दीर्घायु होते हैं।
देवी विसर्जन
आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को जगज्जननी दुर्गा जी का विसर्जन किया जाता है।व्रती प्रातः स्नानादि करके भगवती का विधिवत् पूजन करे।यदि मिट्टी आदि की प्रतिमा हो तो उसका विधिवत् विसर्जन करे।प्रतिमा को रथ पर विराजमान करके बाजा गाजा के साथ किसी जलाशय के समीप जाये और प्रतिमा को जल मे प्रवेश करा दे।देवी प्रतिमा के समीप बोये गये जौ की कजलिया को भी जल मे प्रवाहित कर दे।देवी जी को अर्पित किये गये उपहार आदि को दान कर देना चाहिए।
महानवमी व्रत
यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी को किया जाता है।पद्मपुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल अष्टमी नवमी से युक्त हो और मूल नक्षत्र हो तो उसे महानवमी कहा जाता है।
विधि --
----- व्रती प्रातः स्नानादि कर व्रत का संकल्प ले।फिर देवी जी का विधिवत् पूजन करे।विविध प्रकार के व्यञ्जनो का भोग लगाये।नीराजन आदि के बाद उपहार प्रदान करे।
माहात्म्य --
----------- इससे माता भगवती की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है।
महाष्टमी व्रत
देवी पूजन के लिए आश्विन शुक्ल अष्टमी बहुत शुभ मानी जाती है।परन्तु यह सप्तमी विद्धा नहीं होनी चाहिए।प्राचीन काल मे दैत्यराज दम्भ ने सप्तमी युक्त अष्टमी को पूजा की थी।इसीलिए वह इन्द्र के द्वारा मारा गया था।नवमी युक्त अष्टमी शुभ मानी जाती है।यदि सूर्योदय काल मे अष्टमी हो ; दिनान्त मे नवमी हो और मंगलवार का दिन हो तो बहुत शुभ होता है।
कथा --
----- ब्रह्मपुराण के अनुसार आश्विन शुक्ला अष्टमी को अर्धरात्रि के समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र मे भद्रकाली रूप पार्वती का आविर्भाव हुआ था।इसी अष्टमी को दक्ष-यज्ञ का विनाश करने वाली भद्रकाली करोड़ो योगिनियों सहित महाघोर रूप मे प्रकट हुई थीं।
विधि ---
------ व्रती स्नानादि करके उपवास पूर्वक गन्धाक्षत आदि से भगवती का पूजन करे।यदि उस समय भद्रा व्याप्त हो तो यह पूजन सायंकाल मे करना चाहिए।अर्धरात्रि के समय बलिदान का विधान है।
माहात्म्य --
----------- इससे माता भगवती की असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है।
Wednesday, 23 March 2016
बिल्व पूजन
यह पर्व आश्विन शुक्ला षष्ठी से दशमी तक मनाया जाता है।
विधि --
----- कालिकापुराण के अनुसार आश्विन शुक्ला षष्ठी को बिल्ववृक्ष मे देवी का बोधन करे ; सप्तमी को बेल की शाखा काटकर घर लाये और पूजन करे।अष्टमी को विशेष पूजन ; जागरण और अर्धरात्रि मे बलिदान करे।नवमी को विशेष बलिदान करे।दशमी को उत्सव मनाते हुए विसर्जन करे।
माहात्म्य --
----------- इससे माता भगवती की विशिष्ट अनुकम्पा प्राप्त होती है।