Sunday, 13 March 2016

अशून्य शयन व्रत

          इस व्रत का आरम्भ श्रावण कृष्ण पक्ष द्वितीया से किया जाता है।इसमे शेषशय्या पर शयन करते हुए लक्ष्मी सहित विष्णु का पूजन होने के कारण इसे अशून्य शयन कहा जाता है।
कथा ---
------     इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया है।
विधि ----
------        व्रती प्रातः स्नानादि करके शय्या पर लक्ष्मी सहित विष्णु का विधिवत् पूजन करे।दिन भर उपवास ; नक्तव्रत या अयाचित व्रत करे।शाम के समय दही ; अक्षत ; कन्द-मूल ; फल ; पुष्प ; जल आदि स्वर्णपात्र मे रखकर निम्नलिखित मन्त्र से चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करे --
   गगनाङ्गणसम्भूत दुग्धाब्धिमदनोद्भव।
   भाभासितदिगाभोग रमानुज नमोऽस्तु ते।।
           इसी प्रकार चार मास तक प्रत्येक कृष्णा द्वितीया को करना चाहिए।
माहात्म्य ---
-----------    इस व्रत को करने वाली स्त्री कभी विधवा नहीं होती और पुरुष कभी पत्नीहीन नहीं होता है।यह व्रत समस्त कामनाओं एवं भोगों को प्रदान करने वाला है।

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