आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शरत्पूर्णिमा कहा जाता है।यह पूर्णिमा प्रदोष-काल और निशीथ-काल मे भी विद्यमान हो तो अधिक शुभ होता है।
कथा --
------- प्राचीन काल मे एक वणिक् की दो पुत्रियाँ पूर्णिमा व्रत करती थीं।छोटी पुत्री ने व्रत भंग कर दिया ; जिससे उसके बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे।उसने इसका कारण जानना चाहा तो विद्वानो ने व्रतभंग दोष बतलाया।उसने पुनः व्रत किया फिर भी उसका नवजात पुत्र मृत हो गया।उसने बड़ी बहन को बुलाया।उसके स्पर्श करते ही मृत पुत्र जीवित हो गया।उसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत का व्यापक प्रचार किया।
विधि --
------ व्रती स्नानादि करके अपने इष्टदेव का पूजन करे।रात्रि मे गोदुग्ध की खीर बना कर अर्धरात्रि मे भगवान को समर्पित करे।उसी समय चन्द्रमा का पूजन कर खीर समर्पित करे।दूसरे दिन प्रातः उसी खीर को प्रसाद रूप मे ग्रहण करे।इस खीर मे चन्द्रमा की अमृतमयी किरणे पड़ने से पूरी खीर अमृतमय हो जाती है।
माहात्म्य --
----------- इस दिन स्नान दान व्रत आदि करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
Sunday, 27 March 2016
शरत्पूर्णिमा
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