पौराणिक मान्यता के अनुसार " कल्प " भारतीय काल-गणना मे समय-मापन की विशालतम इकाई है।इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है ----
चौबीस घण्टे का एक अहोरात्र ( दिन-रात) होता है।तीस अहोरात्र का एक मास और बारह मास या 360 अहोरात्र का एक वर्ष होता है।इस वर्ष को ही मानवीय वर्ष कहा जाता है।मैने पिछले लेख "युग" मे स्पष्ट किया है कि इसी मानवीय वर्ष के हिसाब से चार लाख बत्तीस हजार (432000) वर्षों का कलियुग ; आठ लाख चौंसठ हजार (864000) वर्षों का द्वापर ; बारह लाख छियानबे हजार (1296000) वर्षों का त्रेता और सत्रह लाख अट्ठाईस हजार (1728000) वर्षों का सत्ययुग होता है।इन चारो युगों के समय के योग को एक चतुर्युग कहा जाता है।एक चतुर्युग मे 432000+864000+1296000+1728000=4320000 ( तैंतालीस लाख बीस हजार ) वर्ष होते हैं।यही चारों युग जब एक हजार बार व्यतीत हो जाते हैं ; तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।अर्थात् एक हजार चतुर्युग बराबर ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।ब्रह्मा जी के एक दिन ( या एक हजार चतुर्युग ) को ही एक कल्प कहा जाता है।इस प्रकार एक कल्प मे 4320000×1000=4320000000 ( चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष होते हैं।
ब्रह्मा जी का दिन जितने वर्षों का होता है ; उतने ही वर्षों की रात्रि भी होती है।उनका एक दिन बीतने के बाद प्रलय हो जाती है।यह प्रलय-काल ही उनकी रात्रि है।रात्रि व्यतीत होने के बाद फिर नवीन सृष्टि आरम्भ होती है।इस समय तक ब्रह्मा जी के पचास वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और एक्यावनवें वर्ष का प्रथम कल्प चल रहा है।इस कल्प का नाम श्वेतवाराह कल्प है।इस कल्प के सत्ताईस चतुर्युग व्यतीत हो चुके हैं।अट्ठाईसवाँ चतुर्युग चल रहा है।इस 28 वें चतुर्युग के भी तीन युग बीत चुके हैं और चौथा अर्थात् कलियुग चल रहा है। विक्रम सम्वत् 2073 लगते ही इस कलियुग के भी 5117 वर्ष व्यतीत हो जायेंगे।
Thursday, 31 March 2016
कल्प -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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