यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को किया जाता है।इसमे अनन्त की पूजा होने के कारण इसे अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे सुमन्तु नामक ब्राह्मण की पुत्री शीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि के साथ हुआ।शीला ने अनन्त व्रत करके अनन्त-सूत्र धारण किया।इससे वे सुखी और समृद्ध हो गये।एक दिन कौण्डन्य ने उस सूत्र को तोड़ डाला ; जिससे उनकी समृद्धि नष्ट हो गयी।बाद मे कौण्डिन्य को बहुत पश्चात्ताप हुआ।वे भगवान अनन्त का दर्शन करने के लिए वन मे तप करने लगे।भगवान वृद्ध ब्राह्मण के रूप मे प्रकट हुए।कौण्डिन्य ने अपनी व्यथा सुनाई।भगवान ने उन्हें अनन्त-व्रत करने को कहा।मुनि ने व्रत किया और पत्नी सहित स्वर्ग प्राप्त किया।कौण्डिन्य आज भी पुनर्वसु नक्षत्र के रूप मे प्रतिष्ठित हैं।
विधि --
------ व्रती नदी-तट पर स्नानादि करके एक मण्डल मे भगवान विष्णु की पूजा करे।नैवेद्य का अर्धभाग दान कर दे और अर्धांश स्वयं ग्रहण करे।भगवान के समक्ष चौदह गाँठों वाला रखकर उसकी पूजा करे।फिर उस सूत्र को भगवान को निवेदित कर स्वयं हाथ मे धारण कर ले।प्रार्थना कर नैवेद्य ग्रहण करे।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य हर प्रकार का सुख भोगकर अन्त मे भगवत्स्वरूप मे मिल जाता है।
Monday, 21 March 2016
अनन्त चतुर्दशी व्रत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment