सनातन परम्परा मे समय की एक निर्धारित अवधि को युग कहा जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार युग चार हैं ; जो क्रमशः सत्ययुग ; त्रेता ; द्वापर एवं कलियुग के नाम से प्रसिद्ध हैं।इन चारों युगों के सन्ध्या-सन्ध्यांश सहित मान का योग बारह हजार दिव्य वर्ष बताया गया है।इसमे सत्ययुग आदि चारों युगों का अनुपात क्रमशः 4:3:2:1 का होता है ---
दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम्।
चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे।।
चत्वारित्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम्।
दिव्याब्दानां सहस्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कलियुग के दो गुना द्वापर ; तीन गुना त्रेता और चार गुना सत्ययुग होता है।इन युगों का मान मानवीय वर्षों मे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है ---
मानवीय हिसाब से 24 घण्टे का एक दिन ( दिन-रात ) होता है।तीस दिनो का एक मास और 360 दिनो का एक वर्ष होता है।इसी को मानवीय वर्ष कहा जाता है।मनुष्यों के 360 दिनो के बराबर एक दिव्य दिन होता है।इससे स्पष्ट है कि एक दिव्य दिन मानवीय दिन से 360 गुना होता है।
ऊपर चारों युगों का सम्मिलित मान 12000 दिव्य वर्ष बताया गया है।इसका 360 गुना कर देने पर चारों युगों का मान 12000×360=4320000 ( तैंतालीस लाख बीस हजार ) मानवीय वर्ष होता है।इसमे से 4 भाग सत्ययुग का ; 3 भाग त्रेता का ; 2 भाग द्वापर का और 1 भाग कलियुग का होता है।इस प्रकार कुल भागों की संख्या 4+3+2+1=10 हुई।इसमे से कलियुग केवल एक भाग ( कुल का दसवाँ भाग ) होता है।अतः 4320000÷10=432000 (चार लाख बत्तीस हजार ) वर्ष कलियुग का मान हुआ।इसका दो गुना अर्थात् 432000×2=864000 ( आठ लाख चौसठ हजार ) वर्ष द्वापर का मान हुआ।कलियुग का तीन गुना अर्थात् बारह लाख छियानबे हजार वर्ष त्रेता का मान हुआ।कलियुग का चार गुना अर्थात् सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्ष सत्ययुग का मान सिद्ध हुआ।
Wednesday, 30 March 2016
युग -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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