यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है।इसमे चन्द्रोदय-व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है।
कथा --
----- प्राचीन काल मे शाकप्रस्थपुर की एक ब्राह्मणी ने इस व्रत को किया।इसमे चन्द्रोदय के बाद भोजन करना होता है।किन्तु वह भूख से व्याकुल हो गयी।उसके भाइयों ने वृक्ष की आड़ से कृत्रिम प्रकाश करके चन्द्रोदय दिखाकर उसे भोजन करवा दिया।इससे उसका पति अलक्षित हो गया।बाद मे उसने एक वर्ष तक चतुर्थी व्रत किया ; जिससे उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके मिट्टी की वेदी पर पीपल का वृक्ष बनाये।उसके नीचे शिव ; पार्वती ; कार्तिकेय आदि की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन करे।चन्द्रोदय होने पर चन्द्रार्घ्य प्रदान कर भोजन करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
Monday, 28 March 2016
करक चतुर्थी व्रत ( करवा चौथ )
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