Saturday, 12 March 2016

श्रीशिव-प्रातःस्मरण-स्तोत्रम्

           प्रत्येक व्यक्ति की हार्दिक इच्छा होती है कि वह प्रातः सोकर उठने के बाद किसी ऐसे देवी-देवता का नाम स्मरण करे ; जिससे उसका सम्पूर्ण दिन मंगलमय एवं आनन्दमय ढंग से व्यतीत हो।इसके लिए हमारे धर्मशास्त्रों मे अनेक स्तोत्रों का उल्लेख हुआ है।उनमे श्रीशिव-प्रातःस्मरण-स्तोत्रम् का प्रमुख स्थान है।
           यह स्तोत्र बहुत पवित्र एवं पुण्यदायक है।इसमे भगवान शिव जी के मंगलस्वरूप का बहुत सुन्दर वर्णन हुआ है।साथ ही उनकी कल्याणकारिणी प्रवृत्ति ; सर्वोपरि सामर्थ्य सम्पन्नता ; दयालुता ; संसार-रोगहरण की अद्वितीय शक्ति एवं भक्तवत्सलता का मनोहारी चित्रण किया गया है।यह स्तोत्र प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन प्रातःकाल स्मरण करने योग्य है।इसका पाठ करने से मनुष्य जन्म-जन्मार्जित पाप-समूहों से मुक्त होकर शिव जी के कल्याणमय परम पद को प्राप्त कर लेता है।यह स्तोत्र इस प्रकार है --
   प्रातःस्मरामि भवभीतहरं सुरेशं
           गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
   खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
            संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
   प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
            सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
   विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोऽभिरामं
           संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
   प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
           वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
    नामादिभेदरहितं षडभावशून्यं
           संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।
    प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य
           श्लोकत्रयं  येऽनुदिनं   पठन्ति।
    ते दुःखजातं बहुजन्मसंचितं
            हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भोः।।

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