यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है।यह पापियों के पापों को अंकुश की भाँति वशवर्ती कर लेती है।इसलिए इसको पापांकुशा एकादशी कहा जाता है।
कथा ---
------ प्राचीन काल मे विन्ध्याचल पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था।वह बहुत क्रूर एवं दुर्व्यसनी था।एक बार यमदूतों ने उसके पास जाकर कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अन्तिम दिन है।इसे सुनकर वह बहुत भयभीत हुआ और अंगिरा ऋषि के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई।ऋषि ने उसे पापांकुशा एकादशी व्रत करने को कहा।संयोगवश उसी दिन वह एकादशी थी।बहेलिए ने विधिवत् व्रत किया ; जिससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति हुई।
विधि --
----- व्रती स्नानादि से निवृत्त होकर पद्मनाभ संज्ञक भगवान विष्णु का पूजन करे।उपवास और रात्रि-जागरण के बाद दूसरे दिन पारणा करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य निष्पाप होकर धन ; धान्य ; स्त्री ;पुत्र ; पौत्र ; स्वर्ग ; मोक्ष आदि सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
Saturday, 26 March 2016
पापांकुशा एकादशी व्रत
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