कज्जली तृतीया का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया को मनाया जाता है।इसे सातुड़ी तीज भी कहा जाता है।
कथा --
----- प्राचीन काल एक सेठ के कोई सन्तान नही थी।सेठानी ने तीज का व्रत करके नीमड़ी माता से प्रार्थना कि जब मेरे पुत्र होगा ; तब मै सवा एक मन सत्तू चढ़ाऊँगी।माता की कृपा से उसके सात पुत्र हुए किन्तु उसने सत्तू नहीं चढ़ाया।माता जी क्रुद्ध हो गयीं ; जिससे उसके क्रमशः छः पुत्र विवाह के समय सर्पदंश से मरते गये।जब सातवें पुत्र का विवाह हुआ तब मार्ग मे ही उसकी नवविवाहिता पत्नी ने तीज का व्रत करके नीमड़ी माता को सत्तू चढ़ाया।जब वह ससुराल पहुँची तो सेठ के छहों पुत्र जीवत होकर आ गये।बहू की बात सुनते ही सेठानी ने अपनी मान्यता के अनुसार तीज व्रत करके सत्तू चढ़ाया।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।शाम के समय नीमड़ी माता की पूजा करके सत्तू चढ़ाये।चन्द्रोदय होने पर उसी का भोजन करे।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती है।
Tuesday, 15 March 2016
कज्जली तृतीया
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