यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी को किया जाता है।
कथा --
------ देवासुर संग्राम मे जब विष्णु जी ने असुरों का संहार करना आरम्भ किया तब सभी असुर भागकर महर्षि भृगु के आश्रम मे पहुँचे।विष्णु जी वहाँ भी पहुँच गये और क्षण भर मे उनका संहार कर दिया।भृगु जी पत्नी विष्णु जी को शाप देने वाली थीं ; तभी विष्णु जी ने उनका शिर काट लिया।इसी समय भृगु जी आ गये।उन्होंने क्रोधान्ध होकर विष्णु जी को शाप दे दिया कि तुम्हें दस बार पृथ्वी पर जन्म लेना होगा।उन्हीं दस अवतारों के उपलक्ष्य मे यह व्रत किया जाता है।
विधि --
------ व्रती किसी नदी मे स्नान कर तर्पण आदि करके घर आये।वहाँ भगवान के दस अवतारों का पूजन करे।इसी प्रकार प्रतिवर्ष दस वर्षों तक व्रत करे।प्रतिवर्ष क्रमशः पूरी ; घेवर ; कसार ; मोदक ; सोहालक ; खण्डवेष्टक ; कोकरस ; अपूप ; कर्णवेष्ट एवं खण्डक का भोग लगाना चाहिए।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत को करने से भगवान की असीम अनुकम्पा की प्राप्ति होती है।
Saturday, 19 March 2016
दशावतार व्रत
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