यह व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को किया जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे अयोध्या-नरेश नहुष की महारानी चन्द्रमुखी और उनके पुरोहित की पत्नी मानमानिका ने इस व्रत का आरम्भ किया।परन्तु बाद मे प्रमादवश महारानी व्रत करना भूल गयीं।जन्मान्तर मे महारानी तो मालव देश की रानी और मानमानिका पुरोहित-पत्नी बनीं।महारानी को एक पुत्र हुआ किन्तु अल्पायु मे ही उसकी मृत्यु हो गयी।बाद मे पुरोहित-पत्नी ने अपने व्रत का आधा पुण्य महारानी को प्रदान किया ; जिससे वह भी पुत्रवती एवं सुखी हो गयी।
विधि --
----- व्रती प्रातः स्नानादि करके एक मण्डल मे शिव-पार्वती का विधिवत् पूजन करे।फिर शिव जी को आत्म निवेदित सूत्र धारण कर ब्राह्मण भोजन कराये।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को पुत्रसुख की प्राप्ति होती है।
Friday, 18 March 2016
मुक्ताभरण सप्तमी व्रत
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