इस व्रत का आरम्भ आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा से किया जाता है।इसमे कोकिला रूपी गौरी का पूजन होने के कारण इसे कोकिला व्रत कहा जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे मथुरा नगरी मे भगवान श्री राम के कनिष्ठ भ्राता शत्रुघ्न राज्य करते थे।एक बार उनकी पत्नी ने अपने कुलगुरु वसिष्ठ से किसी ऐसे व्रत के विषय मे पूछा ; जिससे अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हो सके।उस समय वसिष्ठ जी ने इसी व्रत का निर्देश दिया था।
विधि ---
------ व्रती महिला आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को शाम के समय श्रावण भर स्नान ; रात्रिभोजन ; भूशयन एवं ब्रह्मचर्य का संकल्प ले।दूसरे दिन से प्रतिदिन प्रातः नदी मे स्नान करे।प्रारम्भ के आठ दिनो तक आँवले के उबटन ; आठ दिनो तक सर्वौषधियों के उबटन ; आठ दिनो तक बच के उबटन और शेष छः दिनो तक तिल आँवला और सर्वौषधि का उबटन लगाकर स्नान करे।प्रतिदिन स्नान के बाद तिल की पीठी से निर्मित कोकिला पक्षी की प्रतिमा का पूजन करके प्रार्थना करे --
तिलसहे तिलसौख्ये तिलवर्णे तिलप्रिये।
सौभाग्यद्रव्यपुत्रांश्च देहि मे कोकिले नमः।।
इस प्रकार प्रतिदिन पूजनोपरान्त घर आकर रात्रि मे भोजन करे।मासान्त मे तिल की पीठी की कोकिला बनाकर उसमे रत्न के नेत्र एवं सुवर्ण के पंख लगाचर ताम्रपात्र मे स्थापित करे।फिर पूजन करके ब्राह्मण को दान कर दे।
माहात्म्य ---
----------- इससे स्त्री को अखण्ड सौभाग्य एवं पति-प्रेम की प्राप्ति होती है।
Saturday, 12 March 2016
कोकिला व्रत
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