यह व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को किया जाता है।इसमे फलों द्वारा सूर्यपूजन करने से इसे फल सप्तमी कहा जाता है।
कथा --
------ इस व्रत का वर्णन भगवान ब्रह्मा जी ने दिण्डी से किया था।
विधि --
------ व्रती चतुर्थी को अयाचित ; पञ्चमी को एकभुक्त ; षष्ठी को उपवास पूर्वक सूर्यपूजन करे।सप्तमी को पुनः फलों द्वारा सूर्यपूजन करे और फलों को दान कर दे।स्वयं भी उसी फल का आहार ले।इसी प्रकार एक वर्ष तक करना चाहिए।
माहात्म्य ---
----------- इससे मनुष्य निष्पाप होकर दरिद्रता एवं सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
No comments:
Post a Comment