यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अर्धरात्रि-व्यापिनी अष्टमी को किया जाता है।
कथा ---
------ लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण जी भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र मे अर्धरात्रि के समय वसुदेव-देवकी के पुत्र के रूप मे अवतरित हुए थे।उस समय इनके माता-पिता मथुरा मे कंस के कारागार मे निरुद्ध थे।परन्तु इनके अवतरित होते ही दोनो की हथकड़ी-बेड़ी टूट गयीं ; पहरेदार सो गये और द्वार खुल गया।वसुदेव जी श्रीकृष्ण को लेकर यमुना को पार कर गोकुल पहुँचे।वहाँ नन्द बाबा की पत्नी यशोदा के पास श्रीकृष्ण को सुलाकर नवजात कन्या योगमाया को लेकर कारागार मे लौट आये।बाद मे श्रीकृष्ण ने गोकुल मे अनेक मनोहर लीलायें की थीं।
विधि ---
------ व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।सुन्दर सूतिका-गृह बनाकर कलश के ऊपर कृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी की प्रतिमा स्थापित कर उनका विधिवत् पूजन करे।बाद मे वसुदेव नन्द यशोदा लक्ष्मी विष्णु आदि का भी पूजन करे।दिन-रात कीर्तन भजन करते हुए व्रतान्त मे पारणा करे।
माहात्म्य ---
----------- यदि अर्धरात्रि के समय अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो इसे जयन्ती कहा जाता है।इस योग मे श्रीकृष्ण का पूजन करने से तीन जन्मो के पाप नष्ट हो जाते हैं।रोहिणी के अभाव मे भी व्रत करने से श्रीकृष्ण की अनुकम्पा प्राप्त होती है।
Wednesday, 16 March 2016
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत
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