यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है।इस व्रत को महिलायें एवं कन्यायें करती हैं।यह व्रत शिव जी को अत्यधिक प्रिय है।
कथा --
------ पार्वती जी ने भगवान शिव जी को पति रूप मे प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया।अन्त मे उन्होने अन्न-जल भी त्याग दिया।वे शिव जी की बालुकामयी मूर्ति बनाकर सदैव उनका पूजन करती रहती थीं।वे शिव-स्मरण करती हुई रात भर जागती रहती थीं।अतः शिव जी प्रसन्न हो गये और भाद्रपद शुक्ला तृतीया को हस्त नक्षत्र रहते प्रकट हो गये।उन्होने पार्वती को पत्नी रूप मे ग्रहण करना स्वीकार कर लिया।इसी उपलक्ष्य मे सुयोग्य वर एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु यह व्रत किया जाता है।
विधि --
------ प्रातः स्नानादि करके निर्जला एवं निराहार व्रत का संकल्प ले।दिन भर शिव एवं गौरी का स्मरण करे।शाम को शिवालय मे गन्धाक्षत आदि से शिव एवं गौरी जी का विधिवत् पूजन कर प्रार्थना करे।जप एवं कीर्तन करते हुए रात्रि-जागरण के बाद दूसरे दिन पारणा करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत के प्रभाव से कन्याओं को सुयोग्य वर एवं महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।उन्हें इह लोक के सुखों के बाद इन्द्रलोक के सभी भोग एवं सायुज्य-मुक्ति को प्राप्ति होती है।
Thursday, 17 March 2016
हरितालिका व्रत
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