यह व्रत भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी को कुमारी कन्याओं द्वारा किया जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे एक सेठ और सेठानी रहते थे।सेठानी मासिक धर्म के समय भी बर्तन आदि छू लेती थी।इसके फलस्वरूप मृत्यु के बाद सेठ बैल के रूप मे और सेठानी कुतिया के रूप मे जन्म लेकर अपने पुत्र के घर मे रहने लगे।एक दिन पुत्र ने पिता की श्राद्ध किया।श्राद्ध की खीर मे चील ने सर्प गिरा दिया।कुतिया ने इसे देखा और जूठा कर दिया।बहू ने उसे पीटकर भगा दिया।बहू ने दूसरी खीर बना श्राद्ध किया।
रात्रि के समय कुतिया ने पूरी घटना बैल को बताई।इसे बहू और बेटे ने सुन लिया।दूसरे दिन पंडितों से पता लगा कि ये बैल और कुतिया ही उसके पिता और माता हैं।पंडितों ने बताया कि चन्द्रषष्ठी के दिन चन्द्रार्घ्य का जल इनके ऊपर पड़ जाय तो इनका उद्धार हो जाय।पुत्र ने उसी प्रकार की व्यवस्था करके उनका उद्धार किया।
विधि --
------ व्रती कन्या को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि करके कलश स्थापित कर पूजन करे और रात्रि मे चन्द्रार्घ्य प्रदान करे।
माहात्म्य ---
----------- इससे असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
Wednesday, 16 March 2016
चन्द्रषष्ठी व्रत
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