भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी जब श्रवण नक्षत्र युक्त होती है ; तब उसे विजया तिथि कहा जाता है।यह सभी को विजय प्रदान करने वाली होने के कारण विजया कहलाती है।
कथा ---
----- प्राचीन काल मे भाद्रपद शुक्ल एकादशी को श्रवण नक्षत्र रहते हुए भगवान वामन का अवतार हुआ था।इनकी माता का नाम अदिति और पिता का नाम महर्षि कश्यप था।
भगवान वामन ने दैत्यराज बलि के यज्ञस्थल मे जाकर उससे तीन पग भूमि माँगी।बलि ने स्वीकार कर लिया।भगवान ने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से ब्रह्मलोक को नाप लिया।तीसरा पग रखने का स्थान नही मिला तो भगवान ने उसे सपरिवार सुतललोक मे भेज दिया।ये सभी कार्य एकादशी को ही सम्पन्न हुए थे।
विधि ---
------- व्रती प्रातः स्नानादि करके दिन भर उपवास करे।रात्रि मे भगवान वामन की प्रतिमा का पूजन कर शयन कराये।दूसरे दिन पुनः प्रतिमा-पूजन करे फिर ब्राह्मण को निवेदित करे।ब्राह्मण भोजन के बाद स्वयं भोजन करे।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को भगवत्कृपा की प्राप्ति होती है।अन्त मे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
Tuesday, 22 March 2016
विजय श्रवण व्रत
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