नाग पञ्चमी का पर्व श्रावण शुक्ल पञ्चमी को मनाया जाता है।इसमे नाग पूजा की प्रधानता होने के कारण इसे नाग पञ्चमी कहा जाता है।
कथा ---
------ समुद्र-मन्थन से जब उच्चैःश्रवा नामक अश्व निकला तब नागमाता कद्रू ने अपनी सपत्नी विनता से कहा कि यह अश्व श्वेत वर्ण का है किन्तु इसके बाल काले हैं।विनता ने यह बात नहीं मानी।कद्रू ने कहा कि शर्त लगा लो ; यदि मेरी बात सत्य हो तो तुम मेरी दासी बन जाओ।अन्यथा मै तुम्हारी दासी बन जाऊँगी।विनता ने शर्त मान ली।
कद्रू ने अपने पुत्रों से कहा कि तुम लोग बाल के समान पतला शरीर बनाकर घोड़े के शरीर मे लिपट जाओ ;जिससे यह काला दिखाई पड़ने लगे।नागों ने कहा कि यह छल है।हम लोग इसमे तुम्हारा साथ नहीं देंगे।कद्रू ने क्रुद्ध होकर शाप दे दिया कि तुम सब जनमेजय के नागसत्र मे भस्म हो जाओगे।भयभीत नागगण वासुकि के साथ ब्रह्मा जी के पास गये।ब्रह्मा जी ने वासुकि से कहा कि तुम अपनी बहन का विवाह जरत्कारु के साथ कर दो।उससे आस्तीक नामक पुत्र होगा।वही तुम लोगों की रक्षा करेगा।
संयोगवश ब्रह्मा जी ने पञ्चमी को वर दिया था और आस्तीक मुनि ने पञ्चमी को ही नागों की रक्षा की थी।इसलिए यह तिथि नागों को बहुत प्रिय है।पञ्चमी तिथि के स्वामी भी नाग ही हैं।
विधि ---
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके अपने द्वार के दोनों ओर गोबर से नाग बनाये।फिर दूध दही चन्दन सिन्दूर गंगाजल आदि से नागों की पूजा करे।बाद मे ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भी मीठा भोजन करे।कद्रू के शाप से नागों के शरीर मे जलन उत्पन्न हो गयी थी।इसीलिए उस जलन को दूर करने के लिए नागो को दूध पिलाया जाता है।
माहात्म्य --
---------- इस दिन नाग-पूजन करने से व्यक्ति को सर्पभय नही होता है।साथ ही उसे मृत्यु के बाद नागलोक की प्राप्ति होती सै।
Tuesday, 15 March 2016
नागपञ्चमी
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