स्वर्णगौरी व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया को किया जाता है।इसमे सुवर्ण की गौरी प्रतिमा की पूजा होने से इसे स्वर्णगौरी व्रत कहा जाता है।
कथा --
----- प्राचीन काल मे विमलापुरी के शासक चन्द्रप्रभ की कनिष्ठा रानी विशालाक्षी ने स्वर्णगौरी का व्रत किया।किन्तु बड़ी महारानी ने व्रत के ग्रन्थियुक्त धागे को तोड़ डाला।इससे वह विक्षिप्त हो गयी।बाद मे गौरी-पूजन करने से वह स्वस्थ हुई।
विधि --
------ व्रती प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर मिट्टी से गौरी जी की प्रतिमा का निर्माण करे।उसके पास सोलह तार के धागे मे सोलह गाँठ लगाकर रख दे।फिर गौरी जी का विधिवत् पूजन करे।धागे को हाथ मे बाँधकर व्रत करे।सोलह वर्षों तक व्रत करने के बाद अष्टदल कमल पर कलश स्थापित करे।उस पर शिव एवं गौरी की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित कर उनका विधिवत् पूजन करे।फिर सोलह पात्रों मे सोलह फल तथा सोलह मिठाई रखकर सोलह ब्राह्मणों को दान करे।साथ ही अन्न गौ शय्या आदि का भी दान करे।ब्राह्मण-भोजन के बाद स्वयं भोजन करे।
माहात्म्य ---
---------- इस व्रत से गौरी जी की असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है।
Sunday, 13 March 2016
स्वर्णगौरी व्रत
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