यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की मध्याह्न-व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है।इसमे दूर्वा सहित गणेश जी का पूजन होने से इसे दूर्वा गणेश व्रत कहा जाता है।
विधि --
------ व्रती प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर सर्वतोभद्रमण्डल पर कलश स्थापित करे।उसमे सुवर्ण निर्मित दूर्वा लगाये।कलश पर गणेश की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन करे।बाद मे बिल्वपत्र चिचड़ी शमीपत्र दूर्वा तुलसीदल आदि अर्पित कर प्रार्थना करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को तीन या पाँच वर्ष तक करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
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