Tuesday, 1 March 2016

सरस्वती-व्रत

       सरस्वती-व्रत का आरम्भ चैत्र शुक्ल पञ्चमी को किया जाता है।यदि उस दिन रविवार हो तो अधिक शुभ होता है।
कथा ---
           एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से विद्या ; बुद्धि ; सौभाग्य आदि प्रदान करने वाले किसी व्रत के विषय मे पूछा।उस समय श्रीकृष्ण ने सरस्वती-व्रत का निर्देश किया था।
विधि ---
            व्रती प्रातः स्नानादि कर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराये।फिर वीणा-पुस्तक-अक्षमाला-कमण्डलु-धारिणी एवं अलंकृत गायत्री माता की प्रतिमा स्थापित करके उनका विधिवत् पूजन करे।फिर इस प्रकार प्रार्थना करे ---
   यथा तु देवि भगवान् ब्रह्मा लोकपितामहः।
   त्वां परित्यज्य नो तिष्ठेत् तथा भव वरप्रदा।।
   वेदशास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकं च यत्।
    वाहितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तु सिद्धयः।।
   लक्ष्मीर्मेधा वरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा मतिः।
    एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।।
           इसी प्रकार प्रत्येक मास की शुक्ला पञ्चमी को पूजन करें।उसके बाद सुवासिनी स्त्रियों का पूजन कर उन्हें दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करें।वर्षान्त मे ब्राह्मणों एवं अपने गुरु को भोजन ; वस्त्र ; आभूषण ; सवत्सा गौ आदि प्रदान कर सन्तुष्ट करें।
माहात्म्य ---
          इस व्रत को करने से मनुष्य विद्वान ; धनवान ;सौभाग्यशाली ;दीर्घायु ;  मधुर-भाषी और कवि बन जाता है।उसे प्रियजनों का कभी वियोग नहीं होता है।

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