Friday, 11 March 2016

गंगा दशहरा

           गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी को मनाया जाता है।वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी मंगलवार को हस्त नक्षत्र रहते गंगा जी स्वर्ग से अवतरित हुई थीं।यह दशमी दस पापों ( तीन कायिक ; चार वाचिक तथा तीन मानसिक ) का हरण करने वाली है।इसलिए इसे दशहरा कहते हैं ---
   दशमी शुक्लपक्षे तु ज्येष्ठे मासि कुजेऽहनि।
   अवतीर्णा यतः स्वर्गाद्धस्तर्क्षे च सरिद्वरा।।
             कुछ स्थलों पर मंगलवार के स्थान पर बुधवार मिलता है।यह कल्पभेद के कारण है।स्कन्दपुराण के अनुसार इस दिन ज्येष्ठ मास ; शुक्ल पक्ष ; दशमी तिथि ; बुधवार ; हस्त नक्षत्र ; व्यतिपात् योग ; गर करण ; आनन्द योग ; कन्या राशी मे चन्द्रमा और वृष राशि मे सूर्य -- ये दस योग विद्यमान हों तो बहुत शुभ माना जाता है।
कथा ---
-----     प्राचीन काल मे राजा सगर के साठ हजार एक पुत्र थे।एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ किया।इन्द्र ने यज्ञ के घोड़े को चुरा कर पाताल मे कपिलमुनि की कुटिया के पास बाँध दिया।सगर-पुत्रों ने मुनि को चोर समझकर उनका घोर अपमान किया।अतः मुनि ने अपनी क्रोधाग्नि से सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया।
         यह घटना जब राजा सगर को ज्ञात हुई तब उन्होंने अपने पौत्र अंशुमान् को मुनि के पास भेजा।अंशुमान् की प्रार्थना से प्रसन्न मुनि ने कहा कि तुम्हारा पुत्र पुण्यसलिला गंगा को यहाँ लाकर इन सब का उद्धार करेगा।बाद मे अंशुमान् के पौत्र भगीरथ की प्रार्थना पर गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं और इनका उद्धार हुआ।
विधि --
-----      दशहरा पर गंगा-स्नान का विशेष महत्व है।अतः यथा सम्भव काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करके गंगा-पूजन करना चाहिए।इसके बाद भगवान शिव जी की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
माहात्म्य ---
-----------       पुण्यसलिला गंगा की महत्ता अनन्त एवं अप्रतिम है।अतः गंगा स्नान करने से मनुष्य पापमुक्त होकर सर्वविध सुखी हो जाता है।

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