रम्भातृतीया व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है।
कथा --
----- एक बार कैलास पर्वत पर माता पार्वती सहित शिव जी विराजमान थे।उस समय शिव जी ने पार्वती जी से पूछा कि तुमने कौन सा व्रत किया था ; जिससे तुम मेरी अर्धाङ्गिनी बन सकीं।पार्वती जी ने बताया कि मैने अपने माता-पिता के निर्देशानुसार रम्भाव्रत किया था।उसी के फलस्वरूप मुझे आपकी अर्धाङ्गिनी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके पूर्वाभिमुख बैठे।अपने चारों ओर पञ्चाग्नि ( गार्हपत्याग्नि ; दक्षिणाग्नि ; आहवनीयाग्नि ; सम्याग्नि तथा सूर्याग्नि ) प्रज्ज्वलित करे।फिर अपने समक्ष महादेवी रुद्राणी की प्रतिमा स्थापित कर उनका विधिवत् पूजन करे।पद्मासन लगाकर सूर्यास्त तक बैठा रहे।अन्त मे प्रणाम कर क्षमा प्रार्थना करे।सपत्नीक ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करे।दूसरे दिन ब्राह्मण-दम्पतियों को मधुर रस समन्वित भोजन कराये।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत को करने से माता रुद्राणी प्रसन्न होकर स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य प्रदान करती हैं।साथ ही उनकी समस्त कामनायें पूर्ण कर देती हैं।
Thursday, 10 March 2016
रम्भातृतीया व्रत
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