वटसावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से अमावस्या तक किया जाता है।
कथा ---
----- प्राचीन काल मे मद्रनरेश अश्वपति की सावित्री नामक एक सुलक्षणा पुत्री थी।उसका विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान के साथ हुआ।नारद जी ने बताया कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष शेष है।अतः सावित्री ने सास-ससुर की सेवा करते हुए भगवती सावित्री का व्रत किया।जिस दिन एक वर्ष पूरा होना था ; उस दिन सावित्री और सत्यवान समिधा लाने के लिए वन मे गये।वहाँ लकड़ी का गट्ठर बाँधने के बाद सत्यवान के मस्तक मे घोर वेदना हुई।वह अचेत होकर भूमि पर गिर गया।सावित्री उसके सिर को अपनी गोद मे रखकर बैठ गयी।
उसी समय यमराज जी प्रकट हुए और सत्यवान का प्राण लेकर चलने लगे।सावित्री भी उनके पीछे चल पड़ी।यमराज ने उसे लौटाने का बहुत प्रयास किया किन्तु वह नहीं मानी।यमराज जी ने सावित्री की पतिभक्ति एवं वाक्चातुरी से सन्तुष्ट होकर सत्यवान को जीवित कर दिया।साथ ही उसे सौ पुत्र होने ; राज्यच्युत ससुर को राज्य प्राप्त होने तथा उन्हें दृष्टियुक्त होने का वर प्रदान किया।
विधि --
------ व्रती त्रयोदशी को स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेकर तीन दिन तक उपवास करे।यदि इतना सामर्थ्य न हो तो त्रयोदशी को रात्रि मे भोजन ; चतुर्दशी को अयाचित और अमावस्या को उपवास करे।अमावस्या को वटवृक्ष के समीप बाँस की डलिया मे सप्तधान्य भरकर दो वस्त्रों से ढँक दे।दूसरी डलिया मे स्वर्ण-निर्मित ब्रह्म सावित्री तथा सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर उनका विधिवत् पूजन करे।पूजन के बाद वटवृक्ष मे कच्चा सूत्र लपेटते हुए परिक्रमा करे।सावित्री को अर्घ्य देकर वटवृक्ष की प्रार्थना करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
Thursday, 10 March 2016
वटसावित्री व्रत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment