मधुसूदन-पूजा का पर्व वैशाख शुक्ल द्वादशी को होता है।इसमे मधुसूदन ( विष्णु ) पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे मधुसूदन-पूजा कहा जाता है।
यदि इस दिन हस्त नक्षत्र एवं व्यतिपात् योग हो ; सूर्य मेष राशि मे और गुरु - मंगल सिंह राशि मे हों तो विशेष पुण्यदायक योग बनता है।
कथा --
----- प्राचीन काल मे कश्मीर मे देवव्रत नामक ब्राह्मण की मालिनी नामक पुत्री थी।उसका विवाह सत्यशील के साथ हुआ।किन्तु कुमार्ग-गामिनी हो जाने के कारण अनेक जन्मों तक कष्ट भोगने के बाद वह कुतिया के रूप मे उत्पन्न होकर पद्मबन्धु नामक ब्राह्मण के यहाँ रहने लगी।एक बार वैशाख शुक्ल द्वादशी को उसके ऊपर पद्मबन्धु के पुत्र के पैर का धोवन पड़ जाने के कारण उसके सभी पाप नष्ट हो गये।बाद मे पद्मबन्धु ने द्वादशी का महापुण्य प्रदान कर उसका उद्धार कर दिया।वही कुतिया स्वर्गलोक मे जाकर उर्वसी नामक अप्सरा के रूप मे प्रकट हुई।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि करके भगवान मधुसूदन का तुलसी आदि से विधिवत् पूजन करे।दिन भर व्रत करे।अपनी सामर्थ्य के अनुसार अन्न ; वस्त्र ; स्वर्ण ; गौ ; पृथ्वी आदि का दान करे।
माहात्म्य ---
----------- उपर्युक्त योग मे स्नान ; दान ; व्रत आदि करने से मनुष्य निष्पाप होकर देवत्व को प्राप्त करता है।
Tuesday, 8 March 2016
मधुसूदन-पूजा
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