वैशाख कृष्ण पक्ष की अन्तिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है।सामान्यतः सभी महीनो की अमावस्या पर्व तिथि मानी गयी हैं।किन्तु सूर्य के मेष राशि मे स्थित रहते हुए वैशाख मास की अमावस्या का विशेष महत्व है।
कथा ---
----- प्राचीन काल मे धर्मवर्ण नामक एक ब्राह्मण थे।उन्होने पुष्कर क्षेत्र मे महात्माओं के मुख से सुना कि अन्य युगों मे यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है ; उससे कई गुना अधिक पुण्य कलियुग मे भगवान विष्णु का नामस्मरण से ही मिल जाता है।उस समय घोर कलियुग चल रहा था।अतः धर्मवर्ण ने सन्यास ग्रहण कर भ्रमण करना आरम्भ कर दिया।
एक दिन वे पितृलोक मे पहुँच गये।वहाँ उन्होने पितरों को घोर कष्ट सहते हुए देखा।धर्मवर्ण ने पितरों का परिचय पूछा।पितरों ने बताया कि हम लोग श्राद्ध और पिण्ड से वंचित होने के कारण कष्ट भोग रहे हैं।हमारे वंश मे धर्मवर्ण नामक एक ही व्यक्ति बचा है ; वह भी विरक्त हो गया है।अतः तुम पृथ्वी पर जाकर उसे समझाओ कि वह गृहस्थ होकर सन्तानोत्पत्ति करे और हमे पिण्डदान करे।पितरों की बातें सुनकर धर्मवर्ण बोला कि मै ही आपका वंशज हूँ।अब मै शीघ्र ही भूलोक पर जाकर आपकी अपेक्षायें पूर्ण करूँगा।
धर्मवर्ण शीघ्र ही भूलोक आ गये।वहाँ मेष राशि मे सूर्य के रहते हुए वैशाख मास मे प्रातः-स्नान ; दान ; तर्पण और अमावस्या को श्राद्ध करके पितरों का उद्धार कर दिया।तभी से यह पापनाशिनी अमावस्या प्रसिद्ध हो गयी।
माहात्म्य ---
--------- इस अमावस्या को स्नान दान पिण्डदान आदि करने से प्राणी पापमुक्त हो जाता है और उसके पितरों का उद्धार हो जाता है।
Saturday, 5 March 2016
वैशाख अमावस्या
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